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कला और स्थापत्य
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मानसार' और मयमतम् में कथित है कि खर्वट पर्वत के समीप स्थित होता है और इसमें सभी जातियों के लोग रहते हैं। कौटिल्य के अनुसार इसमें दो सौ गाँव होते थे।' महा पुराण में वर्णित है कि खर्वट में दो सौ गाँव होते हैं । पाण्डव पुराण के अनुसार पर्वतों से घिरे हुए गाँव को कर्वट नाम से सम्बोधित करते हैं।
७. खेट : जैन पुराणों के अनुसार जो नगर नदी और पर्वत से घिरा हुआ हो, उसे 'खेट' कहते हैं। पाणिनि ने खेट को गहित नगर कहा है ।" अमरकोश में इसके लिए 'कुत्सिक' तथा 'अवद्य' शब्द व्यवहृत हुआ है । मानसार और मयमतम् में उल्लेख आया है कि इसमें अधिकांशतः शूद्र ही निवास करते थे और नदी एवं पर्वत से आवेष्टित होते थे। शिल्परत्न में वर्णित है कि दो ग्रामों अथवा ग्रामसमूह के मध्य में एक समृद्ध लघु-काय नगर खेटक नाम से सम्बोधित किया जाता है।
खेट में समाज के निम्नवर्ग के लोग निवास करते थे। इसकी पुष्टि खेट शब्द की व्युत्पत्ति से की जा सकती है । खे (आकाशे) अटति असौ खेट: अर्थात् आकाश में भ्रमण करने वाले नक्षत्र, ग्रह आदि खेट हैं। जिस प्रकार ग्रह-नक्षत्र आदि सूर्य से सम्बद्ध रहते हुए पृथक् प्रतीत होते हैं, उसी प्रकार निम्न वर्ग के लोग भी गाँव से सम्बद्ध रहते हुए भी अलग से रहते थे।
८. मटम्ब : मटम्ब के लिए मडम्ब शब्द भी व्यवहृत होता है । जैन पुराणों में उस नगर को मटम्ब की अविधा दी गयी है, जो पाँच सौ गाँवों से संयुक्त होते थे। इसमें बड़े नगरों की विशेषताएं परिलक्षित होती हैं । ये व्यापार आदि के केन्द्रस्थल होते थे।
१. मानसार, अध्याय १० २. मयमतम्, अध्याय १० ३. अर्थशास्त्र, अध्याय १, सूत्र ३ ४. महा १६।१७५ ५. पाण्डव २।१५६ ६. सरिगिरिभ्यां संरुद्धं खेटमाहुर्मनीषिणः। महा १६।१७१; हरिवंश २।३
२११५६; पद्म ३२।२५ ७. चेलखेटकटुककाण्ड । गर्हायाम् अष्टाध्यायी ६।२।१२६ ८. मानसार, अध्याय १०; मयमतम्, अध्याय १० ६. ग्रामयोः खेटकं मध्ये....' । शिल्परत्न, अध्याय ५ १०. मडम्बमामनन्ति ज्ञाः पञ्चग्रामशतीवृत्तम् । महा १६।१७२; पाण्डव २।१५६
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