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कला एवं स्थापत्य
[क] जन-सन्निवेश : स्वरूप एवं प्रकार
यद्यपि जैन पुराणों में जन-सन्निवेश के स्वरूप एवं प्रकारों की कोई विस्तृत एवं विशद विवेचना प्राप्य नहीं होती तथापि जैन पुराणों के परिशीलन से जो मोती उपलब्ध हुए हैं, उन्हें माला के रूप में संग्रथित करने का प्रयास अग्रलिखित पंक्तियों में प्रस्तुत किया गया है :
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१. ग्राम : संग्रामे युद्धे धातु से 'अ' प्रत्यय होकर तथा 'सम' उपसर्ग का लोप होने से 'ग्राम' शब्द निर्मित हुआ है । इसका अर्थ है- युद्धस्थल । कहने का तात्पर्य है कि जहाँ सभी प्रकार की चेष्टाएँ की जाती हैं उसे ग्राम कहते हैं । यहाँ पर क्रिया क्षेत्र योगरूढ़ हुआ है। जैन पुराणों में वर्णित है कि जिनमें बाड़ से घिरे हुए घर हों, जिनमें अधिकतर शूद्र और किसान निवास करते हों तथा जो उपवन और तड़ागों से युक्त हों, उसे ग्राम कहते हैं । जैन पुराणों में ही यह जिसमें सौ घर हों उसे निकृष्ट अर्थात् लघु-गाँव और जिसमें
उल्लेख आया है कि
पाँच सौ घर हों एवं
१. महा १६ १६४; हरिवंश २३; पद्म ३।३१८ - ३२७; पाण्डव २।१५८
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