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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
(दाह), लालादरिस्राव ( मुँह से लार बहना), अरुचि ( भोजनादि की रुचि न होना ), छर्दि ( वमन होना ), श्वपथ ( शरीर में सूजन) और स्फोटक ( शरीर में फोड़े निकलना) आदि रोगों का उल्लेख उपलभ्य है ।" विमोहन (मूर्च्छा) के तीन भेद - मायाकृत, पीड़ा तथा मंत्रीषधि - कथित हैं । २ पद्म पुराण में वर्णित है कि यदि किसी को क्षुधा के कारण वायु-रोग हो तो वह बहुत हँसता तथा बोलता है ।" महा पुराण में उदुम्बर नामक कुष्ठ रोग का उल्लेख मिलता है ।"
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।"
वात, पित्त तथा कफ को जैन पुराणों में रोग का कारण माना गया है ।" महा पुराण में वर्णित है कि रात्रि में पर्वतों पर औषधियाँ चमकती थीं । रोग में औषधियों का प्रयोग करते हुए लोगों का उल्लेख जैन पुराणों में मिलता है स्त्री- सम्भोग में असमर्थ होने पर लोगों के औषधि के प्रयोग करने का वर्णन महा पुराण में आया है। पुराने घी के लगाने से सन्निपात रोग दूर हो जाता है ।" क्षयरोग में खांसी बहुत आती है । इसका उपचार धूमपान न करने से है ।
१६. ज्योतिष - शास्त्र : बहुत प्राचीन काल से ज्योतिष का प्रचलन हमारे देश में है । कोई भी मांगलिक कार्य ज्योतिष द्वारा मुहूर्त निकालने के बाद ही सम्पन्न होता था । ज्योतिषी ग्रहों की गणना करके ज्योतिश्चक्र द्वारा ग्रहों की स्थिति ज्ञात करते थे। शिशु का जन्म मुहूर्त जानकर उसके ग्रह-नक्षत्र एवं भाग्यफल को निकाला जाता है ।" मुनि भविष्यवाणी करके भूत, वर्तमान तथा भविष्य जीवन का फल बताते थे । " निमित्त ज्ञान को ज्योतिष - ज्ञान कहते हैं । १२ ग्रहों की स्थिति के आधार पर भाग्यफल निर्धारित किया जाता था । चन्द्र, सूर्य, नदी, समुद्र, मच्छ कच्छप आदि शुभ लक्षण हैं, जिस व्यक्ति के चरणतल में यह पाया जाता है, उसे भाग्यवान् पुरुष समझना चाहिए ।" महा पुराण के अनुसार चक्रवर्ती के पैर में शंख, चक्र, अंकुश आदि लक्षण पाये जाते थे ।" इसी प्रकार गाय
मुख के समान पैर होना शुभ लक्षण का प्रतीक था । " हरिवंश पुराण के वर्णनानुसार चन्द्रमा के समीप गुरु ( बृहस्पति ) से अधिष्ठित ग्रह शुभ लक्षण के प्रतीक होते हैं ।"
१.
२.
पद्म ६४ । ३५
वही २४।६५
वही ५३।३५
३.
४.
महा ७१।३२०
५. वही १५।३०, ५६।२५१
६.
वही ३३।५८
७.
८.
वही १६७
वही २५/४०
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महा ४४।२८१
पद्म १७।३५६-३७७
ई.
१०.
११.
महा ८1१८१-२०५
१२ . वही ६२।१७६ - १६०
१३. वही ३।१६२
१४.
वहा ६।१६८
१५.
वही १४।१४ १६. हरिवंश २७६
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