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शिक्षा और साहित्य
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१७. खगोलशास्त्र : पाश्चात्य विद्वानों की यह धारणा कि प्राचीन काल में भारतीयों को खगोल विज्ञान का ज्ञान नहीं था, नितान्त भ्रान्तिमूलक है । प्राचीन ग्रन्थों के परिशीलन से इस समस्या का समाधान होता है । आलोच्य जैन पुराणों में इस तथ्य पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है । महा पुराण में वर्णित है कि सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण, ग्रहों का स्थानान्तरण, दिन तथा अयन आदि के संक्रमण का ज्ञान सन्मति को हुआ था ।' चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र तथा प्रकीर्णक तारे-ये पाँचों आकाश में रहते थे । इनके उदय अस्त आदि से लाभ-हानि का ज्ञान अन्तरिक्ष-विज्ञान से होता था । महापुराण में चन्द्रमा, तारा, ध्रुव आदि का उल्लेख मिलता है । राहु चन्द्रमा को पूर्णिमा के दिन ग्रसता है अर्थात् केवल पूर्णिमा के दिन चन्द्र ग्रहण होता है । महा पुराण के उल्लेखानुसार आकाश से एक ज्योति निकली थी। ऐसा सुझाव रखा जा सकता है कि उक्त ज्योति सम्भवतः कोई पुच्छल तारा रहा होगा । जैन पुराणों में पृथ्वी को कच्छुए के पृष्ठ पर स्थापित माना गया है ।" जैनाचार्य द्वीप, नदी, पहाड़ आदि की नाप का ज्ञान रखते थे ।
उपर्युक्त तथ्यों के अतिरिक्त आकाश मार्ग का भी ज्ञान था । मुनियों तथा विद्याधरों को आकाशगामी वर्णित किया गया है ।" आकाश-विद्या से एक व्यक्ति को दूसरे स्थान पर शीघ्र भेजा जाता था ।' देवताओं के पास विमान होने का उल्लेख मिलता है । पद्म पुराण के वर्णनानुसार उस समय आकाश मार्ग से भी आक्रमण होते थे ।" इस प्रकार सुझाव रखा जा सकता है कि आलोचित पुराणों के काल में सम्भवतः विज्ञान का प्रचलन हो गया था ।
१८. अन्य शास्त्र : आलोचित जैन पुराणों में अन्य विद्याओं का उल्लेख प्राप्त होता है, जो अधोलिखित हैं- नीतिशास्त्र, " मानविद्या (मापविद्या) १२, उपकरण निर्माणशास्त्र, आयुधनिर्माणशास्त्र, " वस्त्रों से सम्बन्धित शास्त्र, , १५ लक्षणशास्त्र", तंत्रशास्त्र", लोकाचारशास्त्र, " दर्शनशास्त्र" और रत्न- परीक्षाशास्त्र २० आदि ।
१. हरिवंश ३।८७
२ . वही ६२।१८२-१८३
३. महा ४ ६।५१-५४
वही ३३८१-८७
४.
५. वही ५१।४८
६.
७. ८.
८. वही ६।६५
१०. पद्म ६।५४१
पद्म १०५।१५०; हरिवंश ५।६७
११.
१२.
१३.
१४.
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१५.
१६.
महा
६६, ८२४६
१७.
वही ५।१००, ६२।२६६; पद्म १८८ १८.
पद्म ७३ ।२८
वही २५।६०-६२
वही २४।५६
वही २४ । ५७
वही २४ । ५८
वही १६।१२३
वही १६।१२३
वही १६।१२५
१६. वही १८६२ वही १६।१२४
२०.
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