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शिक्षा और साहित्य
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६. गुरु-सेवा : आलोचित पद्म पुराण के परिशीलन से गुरु-सेवा पर प्रकाश पड़ता है । सामान्य से राजपुन तक सभी शिष्य गुरु की सेवा करते थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि उस समय समाज में गुरु की सेवा करना सभी शिष्यों के लिए अनिवार्य था । इससे धनी और निर्धन छात्रों में हीन भावना की उत्पत्ति नहीं होती थी और सभी में मेल-मिलाप था । उनमें आपस में भेद-भाव की भावना नहीं होती थी।
१० गुरु-दक्षिणा : आलोचित जैन पुराणों के अनुशीलन से ज्ञात होता है कि शिष्य अध्ययन के उपरान्त अपने गुरु को यथाशक्ति गुरु-दक्षिणा देते थे। परन्तु गुरु-दक्षिणा के लिए कोई सीमा निर्धारित नहीं की गयी थी।
११. स्त्री-शिक्षा : जैन पुराणों के रचनाकाल में स्त्रियों की शिक्षा का ह्रास हो गया था । जैनाचार्यों ने उनकी स्थिति के उत्थान का प्रयत्न किया। जैन पुराणों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उस समय स्त्रियों को भी शिक्षा प्रदान की जाती थी। जैनाचार्यों ने पुत्र के समान पुत्रियों की शिक्षा पर बल दिया है। हरिवंश पुराण में कन्याओं को शास्त्रों में पारंगत तथा प्रतियोगिता में विजयी प्रदर्शित किया गया है । जैन पुराणों में वर्णित है कि लड़कियां गणित, वाङमय ( व्याकरण, छन्द एवं अलंकारशास्त्र ) तथा समस्त विद्याओं में निपुण होती थीं। कन्याओं के शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त वयस्क होने पर उनका विवाह होता था।' अतः स्पष्ट है कि जैन पुराणों के रचनाकाल में स्त्री-शिक्षा का विशेष प्रचारप्रसार था।
१२. सह-शिक्षा : आलोच्य जैन पुराणों के अवलोकन से यह निष्कर्ष निकलता है कि लड़के और लड़कियां साथ-साथ अध्ययन किया करते थे। पिता अपने पुत्र-पुत्रियों को साथ-साथ प्रारम्भिक शिक्षा खड़िया, मिट्टी के टुकड़ों से घर पर
१. पद्म १००।८१; तुलनीय-गोपथब्राह्मण १।२।१-८; महाभारत ५॥३६॥५२ २. वही ३६।१६३ ११।५१; हरिवंश १७७६ ३. यादव-वही, पृ०४०२ ४. महा १६१६८ ५. वही १६।१०२, १०८।११५ ६. हरिवंश २१।१३३ ७. पद्म १५२०, २४१५; महा १६।१०५-११७ ८. वही २४।१२१; हरिवंश ४५॥३७; महा ६३।८
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