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राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था
की सेनाएँ युद्ध-स्थल पर मिलती थीं । युद्ध के नियमानुसार ही
होता था ।
युद्ध आरम्भ होने के पूर्व नगाड़े बजाये जाते थे । तदनन्तर मारू -बाजे बजाये जाते थे । २ विजयी राजा शंखवादन करता था। विजेता राजा का एक हजार आठ स्वर्ण कलशों से अभिषेक किया जाता था । आलोचित पुराणों में विभिन्न प्रकार के युद्धों का वर्णन उपलब्ध होता है । इनके भेद निम्नवत् हैं : धर्मयुद्ध, दृष्टियुद्ध', जलयुद्ध", मेषयुद्ध', मायायुद्ध' मल्लयुद्ध", गरुडव्यूह " चक्रव्यूह १२, कपटयुद्ध", गतियुद्ध",
"
बाहुयुद्ध" ।
१.
महा ६८।५४६
२.
वही ६८५६८
३. वही ६८।६३१
युद्ध में प्रत्येक पक्ष एक दूसरे के विनाश करने का प्रयास पूर्ण रूपेण करता है । जैन पुराणों में युद्ध का भव्य वर्णन प्राप्य है ।" योद्धागण युद्ध में अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हुए मृत्यु का वरण करने के लिए तत्पर रहते थे, किन्तु उन्हें पराजय स्वीकार नहीं था । " सैनिक - वृत्ति का समाज में सम्माननीय स्थान था ।
४. वही ६८ । ६४४
५. हरिवंश ११1८०
६. वही ११1८१; महा ३६ ४५; पद्म ४।७३
७.
वही ११।८३; वही ३६ । ४५; वही ४ । ७३
वही ४७।१०६
महा ६८।६१७
८.
ई.
१०. हरिवंश ११।८४, २४५७; महा ७०।४७४, ३६।५८
११. वही ५०।१३३
१२ . वही ५०।१३३
१३. महा ४४।१३८
१४. हरिवंश ३४ ३१; महा ४६ । १५७
. १५.
१६.
१७. पद्म ५७।८
१५
पद्म ४।७३
हरिवंश ५३ | १४; महा ६८।५४०-६४४; पद्म ७।६७-७४
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उनमें युद्ध
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