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राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था
२२३ होता है-हाथी, घोड़ा, रथ, पैदल, देवता तथा विद्याधर ।' जैन पुराणों में चतुरंगिणीसेना-हाथी, घोड़ा, रथ तथा पैदल-का विशेष महत्त्व प्रदर्शित किया गया है ।२ जैन पुराणों में विभिन्न प्रकार की सेनाओं का भी उल्लेख प्राप्य है, जो सामान्य सेना से पृथक् अपना महत्त्व रखती थों : म्लेच्छ-सेना,' बन्दर सेना आदि। सेना के प्रमुख अंगों का वर्णन निम्नांकित है :
[i] हस्ति-सेना : हमारे देश में प्राचीन काल से ही हस्ति-सेना का प्राधान्य रहा है । हाथी के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख जैन पुराणों में हुआ है।
[ii] अश्व-सेना : विदेशियों के प्रभाव के कारण भारत में अश्वसेना के प्रयोग का अत्यधिक प्रचलन हुआ । इनका सेना में महत्त्वपूर्ण स्थान था। अश्व युद्ध स्थल में विषम परिस्थितियों का सामना करने में निपुण होते थे। इनके प्रकारों एवं गुण-दोषों का वर्णन जैन पुराणों में हुआ है। काम्बोज, वाहलीक, तैतिल, आरट्ठ, सौन्धव, वानायुज, गान्धार तथा वाण देशों के घोड़े उत्तम नश्ल के कथित हैं।
[iii) रथ-सेना' : हमारे देश में प्राचीन काल से रथ-सेना के प्रयोग का प्रचलन है। जैन पुराणों में रथ के प्रकार, गुण-दोष, महत्त्व आदि की विवेचना प्राप्य है।
[iv] पैदन-सेना" : सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पैदल-सेना होती थी। विजयश्री की उपलब्धि में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान होता था। इसके निम्न भेद कथित हैं-मौल, भृत्य, मित्र, श्रेणी तथा आटविक ।"
सेना के अन्य अंग भी युद्ध स्थल में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते थे।
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१. महा ६।११३, ५८।११० २. हरिवंश २०७१, ११।२; महा ६२।१३८; पद्म ४१६८ ३. पद्म २८।१२८ ४. महा ६८।५१५
- वही ४४।२०४ ६. वही ३१।३, ४४१७६ ७. वही ३०।१०७ ८. वही २६।७७, ३७।१६० ६. वही २७।११०, ३०।३ १०. मानसोल्लास २॥६॥५५६
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