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राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था
१६५ दुष्ट मनुष्य को कुछ देकर वश में करना, स्नेहपूर्ण व्यवहार द्वारा आत्मीय जनों को अनुकूल रखना, शत्र को शील द्वारा वश में करना, मित्र को सद्भावपूर्ण आचरण द्वारा अनुकूल रखना, क्षमा से क्रोध को, मार्दव से मान को, आर्जव से माया को और धैर्य से लोभ को वश में करना राजा का गुण (कर्तव्य) माना जाता था।
महा पुराण के अनुसार राजाओं में छः गुण-सन्धि, विग्रह, यान, आसन, संस्था और द्वैधीभाव का होना अनिवार्य माना गया था। इसका विशद् वर्णन पूर्वपृष्ठों पर किया जा चुका है। महा पुराण ही के अनुसार राजा को साम, दाम, दण्ड एवं भेद का ज्ञान और सहाय, साधनोपाय, देशविभाग, कालविभाग तथा विनिपातप्रतीकार आदि पाँच अंगों से निर्णीत सन्धि एवं विग्रह और युद्ध के रहस्य का ज्ञाता होना चाहिए।'
जैन पुराणों के समान ही जैनेतर साधनों से भी राजा के गुणों पर प्रकाश पड़ता है। महाभारत एवं स्कन्द पुराण में राजा के छत्तीस गुणों का उल्लेख उपलब्ध है।
४. राजा के उपहार : अधीनस्थ राजा, सामन्त, ऋषि एवं प्रजा अपने राजा (स्वामी) को यथाशक्ति उपहार प्रदान करते थे। दिग्विजय, विवाहोत्सव, राज्याभिषेकोत्सव, विजयोत्सव या अन्य किसी शुभावसर पर उपहार प्रदान करने की प्रथा प्रचलित थी। जैन पुराणों के अनुसार हार, मुकुट, कुण्डल, रत्न, वस्त्र, तीर्थोदक, चूड़ामणि, कण्ठहार, कवच, बाजूबन्द, कड़ा, करधनी, पुष्पमाला, मोतियों की जाली, कटिसूत्र, झारी, कलशजल, केशर, अगरू, कपूर, सुवर्ण, मोती, सेना को भूसा एवं
१. पद्म ६७।१२८-१३० २. सन्धिविग्रहयानानि संस्थाप्यासनमेव च ।
द्वैधीभावश्य विज्ञेयः षड्गुणा नीतिवेदनम् ॥ महा ४४।१२६-१३०, (टिप्पणी) ३. भूपतिः पद्मगुल्माख्यो दृष्टोपायचतुष्टयः ।
पञ्चाङ्ग मन्त्रनिर्णीतसन्धिविग्रहतत्त्ववित् ।। महा ५६।३ ४. अर्थशास्त्र ६।१; मनु ७।३२-४४; याज्ञवल्क्य १।३०६-३३४; अग्नि पुराण
२३६।२-५; कामन्दक १२१-२२, ४१६-२४; मानसोल्लास २।१।१-६,
पृ० २६; शुक्र ११७३-८६ ५. अवस्थी-स्टडीज़ इन् स्कन्द पुराण, भाग १, लखनऊ, १६६५, पृ० २४२-२४४
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