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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
( मंत्रणा में निपुण) आदि गुणों से संयुक्त होना चाहिए।' प्राचीन आचार्यों ने भी अमात्य के सम्बन्ध में उल्लेख किया है कि उसे ललित कलाविद्, अर्थशास्त्री, अन्वयप्राप्त शूरवीर, निर्लोभी, संतोषी, सन्धिविग्रहकोविंद, चतुर, वाक्-पटु, उत्साही, प्रभावशाली, प्रतिभावान् मृदुभाषी, धीर, दक्ष, स्मृतिवान्, मेधावी, स्वर-युक्त, धर्मशास्त्र-वेत्ता, सहिष्णु, स्नेही, पवित्र, स्वाभिमानी, स्वामिभक्त, सुशील, स्वस्थ, समर्थ, दूरदर्शी, प्रियदर्शी, प्रत्युत्पन्नमति, प्रामाणिक, सत्यवादी, ईमानदार, स्मृति एवं धारणा आदि गुणों से विभूषित होना चाहिए । शुक्राचार्य के मतानुसार यदि राज्य, प्रजा, बल एवं कोश, सुशासन का सम्वर्धन न हो और मंत्रियों की नीति एवं मंत्रणा से शत्रु का विनाश न हो तो ऐसे मंत्रियों को नहीं रखना चाहिए ।" कौटिल्य के विचारानुसार जिस प्रकार एक चक्र से रथ नहीं चल सकता, उसी प्रकार बिना मंत्रियों की सहायता के राजा स्वतः राज्य का संचालन नहीं कर सकता । महाभारत में वर्णित है कि राजा अपने मंत्रियों पर उसी प्रकार निर्भर रहता है, जिस प्रकार प्राणिमात्र पर्जन्य पर, ब्राह्मण वेद पर और स्त्री अपने पति पर निर्भर रहती है ।" मनु ने राजकार्य हेतु मंत्रियों की उपस्थिति को अनिवार्य माना है । "
(iii) सेनापति: सेनापति का पद महत्त्वपूर्ण होता था । राजा के विश्वासपात्र व्यक्ति अथवा राजकुमारों में से सेनापति का चयन किया जाता था । देश की रक्षा तथा युद्ध में विजय का उत्तरदायित्व उस पर होता था । महा पुराण के अनुसार सेना को सुसंगठित कर विजय प्राप्त करना उसका मुख्य उद्देश्य होता था । विजय प्राप्ति से उसका यशवर्धन होता था । " प्राचीन ग्रन्थों में उसके गुणों का वर्णन करते हुए उल्लिखित है कि सेनापति को कुलीन, शीलवान, धैर्यवान, अनेक भाषाओं का ज्ञाता, गजाश्व की सवारी में दक्ष, शस्त्रास्त्र शास्त्र का ज्ञाता, शकुनविद,
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१.
२.
३.
पद्म ८।१६-१७, १५।२६-३१,
६३।३, १०३।६, महा ४।१६०
व्यवहारभाष्य १ पृ० १३१; ज्ञाताधर्मकथा १ पृ० ३; अर्थशास्त्र १1८-६ महाभारत शान्तिपर्व ११८।७ - १४; याज्ञवल्क्य १।३१२; विष्णु ३।१७ ; नीतिसार ४ । २४-३०; शुक्र २।५२ - ६४; मानसोल्लास २।२।५२-५६
राज्यं प्रजा बलं कोश: सुनृपत्वं न वर्द्धितम् । यन्मंत्रतोऽरिनाशस्तैर्मन्त्रिभिः किं प्रयोजनम् || शुक्र २२८३
४. अर्थशास्त्र १।३
महाभारत शान्तिपर्व ५।३७-३८
५.
६. मनु ८।५३
७.
महा ३७।१७४
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