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राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था
२१७ धार्थ कठोर दण्ड का विधान निर्धारित था ।' जैन आगमों में परस्त्रीगमन के अपराध में भी कठोर दण्ड देने की व्यवस्था थी। आलोचित पद्म पुराण में वर्णित है कि परस्त्री का स्पर्श, उससे वार्तालाप एवं उसके साथ सम्भोग के अपराध में अत्यन्त कठोर दण्ड देने का विधान था । कभी-कभी इस प्रकार के अपराधी को देश-निष्कासन का दण्ड प्रदान किया जाता था।' महा पुराण के वर्णनानुसार कन्यापहरण के अपराध में राजा अपने पुत्र को भी श्मशान में मृत्यु-दण्ड देता था। उक्त पुराण में मौसी की पुत्री से मैथुन के अपराध में अंग विच्छेदन का विधान विहित है।'
नेतर ग्रन्थों के अनुसार माता, मौसी, चाची, बहिन, मित्र या शिष्य की स्त्री, बेटी, पुत्र-बधू, गुरु-स्त्री, शरणार्थी-स्त्री, रानी, संन्यासिनी, दाई (शिशुपालिनी) या किसी भी पतिव्रता नारी या किसी उच्चवर्ग की नारी के साथ बलात्कार करने पर उसका लिंग काट लिया जाता था।
आलोचित जैन पुराणों में विभिन्न प्रकार के अपराधों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के दण्ड का विधान निर्धारित है। महा पुराण में उल्लेख आया है कि मन्दिर का मुर्गा यदि किसी का अनाज खाता था और अनाज के स्वामी द्वारा उसका वध कर दिया जाता था तो वह व्यक्ति दण्ड का भागी होता था। यदि कोई व्यक्ति हार आदि चुराकर वेश्या को प्रदान करता था तो उसे मृत्यु दण्ड प्रदान करने का विधान था। यदि पुत्र पिता की हत्या करता था तो उसे इस अपराध में देश निष्कासन का दण्ड प्रदान किया जाता था । जुए में हारे हुए धन के भुगतान की असमर्थता में ऐसे व्यक्ति को दुर्गन्धित धुएँ में बैठाते थे। भेड़ चोरी कर उसके मांस का भक्षण करने के अपराध में अपराधी को विष्ठा भक्षण कराते थे। किसी व्यक्ति के धरोहर का सामान. किसी के यहाँ रखा है और उसके मांगने पर वह सामान न देकर बेईमानी १. ऋग्वेद ४।३८।५; महाभाष्य ५।१।६४-६६; याज्ञवल्क्य २।२६६-२६८; मनु
८।३२३, ६२७६-२८० २. जगदीश चन्द्र जैन-वही, पृ० ८३ ३. पद्म १०६।१५३-१५६ ४. महा ६७।६६ ५. वही ४६।२७६-२७७ ६. नारद, स्त्रीपुंसयोग ७३-७५; वृद्ध-हारीत ७।२०१ ७. वही ४६।२७२-२७५ [ ऐसी सम्भावना है कि जैन मन्दिर में मुर्गा
पालने की प्रथा रही हो और उस मुर्गे से प्राप्त आय मन्दिर के प्रयोग में लायी जाती होगी (महा पुराण के दृष्टान्त से)।
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