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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
राज
करता है तो ऐसी स्थिति में वह व्यक्ति राजा को इसकी सूचना देता था । कर्मचारी उसके घर की तलाशी लेते थे और सामान उपलब्ध होने पर उसकी सम्पूर्ण सम्पत्ति का हरण कर उसे गोबर-भक्षण कराते थे । मल्लों द्वारा चोर को घूसा मारा जाता था, जिससे उसकी मृत्यु भी हो जाया करती थी । पद्म पुराण में राजदण्ड के अपराधी को तलवार से दो टुकड़े करने, मुगदरों के प्रहार से प्राण लेना, काष्ठ के सिकजे में अत्यन्त तीक्ष्णधार वाली करोंत से धीरे-धीरे काटने से चिल्लवाने, अन्य शस्त्रों से चूर-चूर करने और पानी में विष मिलाकर पिलाने की व्यवस्था थी । २ महा पुराण में अपराधी के अपराध प्रमाणित होने पर मृतिका एवं विष्ठाभक्षण, मल्लों द्वारा मुक्का मारने, सम्पूर्ण सम्पदा हरण की व्यवस्था थी । पद्म पुराण में अपराधी के हाथ-पैर सांकलों में बाँधकर नंगी तलवार के पहरे (संरक्षण) में लाने का उल्लेख उपलब्ध है । इसी पुराण में अन्यत्र वर्णित है कि अपराधी को नगर में घुमाया जाता था, जहाँ पर जनता उसे धिक्कारती थी तथा उसके ऊपर धूल फेंकती थी । " राज्य के आय के स्रोत : देश की सुख एवं समृद्धि का मूलाधार वहाँ की आय होती है । यह आय कई स्रोतों से होती थी । जैन आगमों में अट्ठारह प्रकार के करों का उल्लेख उपलब्ध होता है । महा पुराण में वर्णित है कि राजा उसी प्रकार प्रजा से कर वसूल करे जिस प्रकार दुधारू गाय को बिना कष्ट दिये दूध प्राप्त करते हैं । उक्त पुराण के ही परिशीलन से ज्ञात होता है कि इसके रचनाकाल में ब्राह्मण कर देने से मुक्त थे, परन्तु महा पुराणकार ने ब्राह्मणों पर भी कर लगाने का विधान निरूपित किया था । पद्म पुराण के वर्णनानुसार प्रजा की रक्षा के फलस्वरूप राजा को किसी न किसी रूप में उससे कर प्राप्त होता था । वनवासी ऋषि-मुनि की रक्षा के कारण राजा को उनकी तपस्या के फल का छठांश भाग मिलता था । जैन
१३.
१. हरिवंश २७।२३-४१
२. पद्म ७२।७४-७६; तुलनीय - मनु ८।२४६; बृहस्पतिस्मृति १७।१६
३.
४
५.
६.
19.
is as
८.
महा ४६।२७२-२७५
पद्म १०/१५८
वही ५३।२१६ - २२१, ७२।७३
जगदीश चन्द्र जैन - वही, पृ० १११ - ११२
महा १६ । २५४; तुलनीय - महाभारत शान्तिपर्व ३४।१७-१८ पराशरस्मृति
११६२, धम्मपद ४६
वही ४२।१८१ - १६२
वही २७ २८
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