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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
अभिषेक के शुभ अवसर पर विभिन्न प्रकार के वाद्य, शंख, झालर, तूर्य, दुन्दुभि आदि बजाये जाते थे । तदुपरान्त सुवर्ण एवं रजत के कलशों से राजा को स्नान कराया जाता था । इसके पश्चात् राजा को मुकुट, अंगद, केयूर, हार, कुण्डल आदि आभूषणों से विभूषित कर वस्त्र, माला, विलेपनों से सुशोभित किया जाता था । राजा के अभिषेक के बाद साम्राज्ञी का भी अभिषेक किया जाता था । पद्म पुराण में दो भाईयों के साथ-साथ अभिषेक का उल्लेख मिलता है । ? यह द्वैराज्य प्रथा का स्पष्टतः संकेत करता है । जैनेतर ग्रन्थों में भी उक्त प्रकार के राज्याभिषेक का सुन्दर वर्णन उपलब्ध होता है । अग्नि पुराण में पाँच प्रकार के राज्याभिषेक का उल्लेख प्राप्य होता है ।"
८.
राजतन्त्र की सीमाएँ : जैनाचार्यों ने राजतन्त्र को सीमित करने का प्रयास किया था। जैन पुराणों में दुराचारी राजा के विरोध का उल्लेख मिलता है । महा पुराण के अनुसार जब राजा दुराचारी हो जाता था और उसके अत्याचारों से प्रजा अत्यधिक परिपीडित हो जाती थी तो उसके राज्य का परित्याग कर प्रजा अन्य राजा के राज्य में चली जाती थी।" दुराचारी राजा द्वारा जब प्रजा का शोषण अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता था तो वहाँ की प्रजा द्वारा राज्य से उसके निष्कासन का उल्लेख पद्म पुराण में आया है ।' अन्यायी एवं पापी राजा के राज्य में अनेक प्रकार के उत्पातों का वर्णन महा पुराण में उपलब्ध होता है ।"
जैन पुराणों के तुल्य ही जैनेतर साक्ष्यों से भी राजतन्त्र को सीमित करने के प्रयास का उल्लेख मिलता है । रामायण में वर्णन आया है कि प्रजा को अत्यधिक अधिकार उपलब्ध था । वह कर्त्तव्यच्युत राजा को अपदस्थ कर सकती थी ।" ब्राह्मण
१. पद्म ८८।२०- ३३; महा ११।३६-४५, १६।१६६-२३३, ३८१२३८-२३६ २ . वही ८८।२६
३.
तैत्तिरीय संहिता २।७।१५ - १७; नीतिमयूख पृ० ४-५; बौधायनगृह्यसूत्र १।२३ ; महाभारत शान्तिपर्व ४०१६ - १३; विष्णुधर्मोत्तर २।१८।२-४; रघुवंश २७|१० ; हर्षचरित पृ० १०३
बी० बी० मिश्र - वही, पृ० ४७
४.
५.
महा ६२।२१०-२११
६. पद्म २२।१३६ - १४४
७.
महा ६८।२२६
८.
रामायण ३।३३।१६
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