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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
उल्लिखित है कि जिस प्रकार गर्भवती स्त्री अपने उदरस्थ शिशु को क्षति पहुँचने की आशंका से अपनी इच्छाओं का दमन कर सुखों का परित्याग करती है, उसी प्रकार राजा को भी अपनी प्रजा के हित के सामने अपनी इच्छाओं का दमन कर सुखों का परित्याग करना चाहिए ।"
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७. राजा के उत्तराधिकारी : चयन, शिक्षा और राज्याभिषेक : आलोचित जैन पुराणों में राजा के उत्तराधिकारियों के चयन, उनकी शिक्षा तथा राज्याभिषेक के विषय में विशद् विवरण उपलब्ध होता है, जिसका वर्णन अग्रलिखित है :
(i) चयन : महा पुराण के अनुसार राजा का उत्तराधिकारी राजा का ज्येष्ठ पुत्र होता था, उसके बाद राजा के लघु पुत्र को उत्तराधिकारी बनाया जाता था । लघु पुत्र के राज्य ग्रहण करने पर ज्येष्ठ पुत्र के ज्येष्ठ पुत्र को राज्य देने का सामान्य नियम था । परन्तु महा पुराण में ही अन्यत्र उल्लेख है कि विशेष परिस्थितियों में राज्य का उत्तराधिकारी राजा का लघु भ्राता भी हो सकता था । उसके अस्वीकार करने पर वह अपने ज्येष्ठ पुत्र को राजगद्दी प्रदान करता था । उक्त पुराण में यह स्पष्टतः वर्णित है कि राज्य का उत्तराधिकार वंशानुगत (क्रम प्राप्त ) था । यहाँ पर उल्लेखनीय है कि जैनेतर आचार्यों ने भी पिता की सम्पूर्ण सम्पत्ति का उत्तराधिकारी ज्येष्ठ पुत्र को माना है ।" महा पुराण में उल्लिखित है कि राजा अपने ज्येष्ठ पुत्र को राजगद्दी देते समय सभी सभासदों की उपस्थिति में अपना मुकुट उसके मस्तक पर पहनाता था । पद्म पुराण में स्पष्टतः वर्णन आया है कि यह परम्परा नहीं थी कि समर्थ ज्येष्ठ पुत्र को छोड़कर लघुपुत्र को राजगद्दी प्रदान की जाय । विषम परिस्थितियों में महा पुराण में इस प्रकार की व्यवस्था उपलब्ध है कि राजा की अकाल मृत्यु होने पर अथवा अन्य कारण से यदि उसका उत्तराधिकारी अल्पायु
५.
नित्यं राज्ञा तथा भाव्यं गर्भिणी सहधर्मिणी ।
यथा एवं सुखमुत्सृज्य गर्भस्य सुखभावहेत् ॥ अग्नि पुराण २२२८
२. महा ८७६ -८६
३. वही ६३ । ३०७-३१०
४.
५.
वही ५२।३६; तुलनीय - जगदीश चन्द्र जैन - वही, पृ० ४३
तैत्तिरीय संहिता ५|२|७; रामायण २ | ३ | ४०; महाभारत सभापर्व ६८८; अर्थशास्त्र १।१७; मनु ६।१०६
६. मुकुटं मूर्ध्नि तस्याधान् नृपैर्नृपवरः समम् । महा ११।४३
७.
पद्म ३१।१२१
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