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राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था
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कस्तूरी मृग की नाभि अपने स्वामी को भेंट में प्रदान करते थे । अधीनस्थ राजा या सामन्त वृष, नाग, बानर आदि चिह्नित पताकाएँ धारण करते थे । मण्डलेश्वरों ( सामन्तों ) के राजाधिराज (राजेन्द्र ) के दर्शनार्थ आने का उल्लेख पद्म पुराण में भी प्राप्य है ।"
जैन पुराणों के उक्त तथ्यों की पुष्टि अभिलेखीय साक्ष्य से होती है। समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति में उत्कीर्ण है कि अधीनस्थ राजा अपने स्वामी को यथाशक्ति धन, सम्पत्ति एवं कन्या आदि उपहार स्वरूप प्रदान कर स्वामी द्वारा अनुदिष्ट चिह्न धारण करते थे । * अभिलेखीय साक्ष्यों से यह भी विदित है कि गुप्त काल से सामन्त व्यवस्था का प्राधान्य हो जाता है । "
आलोचित पुराणों के प्रणयन काल के जैनेतर साक्ष्यों से भी सामन्त व्यवस्था की पुष्टि होती है ।" डॉ० राम शरण शर्मा के मतानुसार सामन्त व्यवस्था का उद्भव मौर्योत्तर काल एवं विकास गुप्त काल में हुआ था। छठी शती में विजित जागीरदारों को सामन्त के रूप में मान्यता प्रदान की गयी थी दारों की स्वतन्त्र सत्ता का भी उल्लेख किया है ।' दक्षिण भारत में भूस्वामी का बोधक बन गया था ।" में दक्षिण तथा पश्चिमी भारत के दानपत्रों में सामन्त शब्द का प्रयोग जागीरदार (भूस्वामी) के अर्थ में हुआ है ।" सामन्त, महासामन्त, अनुरक्तसामन्त, आप्तसामन्त,
। कौटिल्य ने पड़ोसी जागीरपाँचवीं शती में सामन्त शब्द पाँचवीं शती के अन्तिम भाग
१.
२. पद्म १०२।१२६
वही २८२
३.
४.
महा २८ | ४२; हरिवंश ११।१६
इलाहाबाद स्तम्भ लेख २३; उदयनारायण राय - - वही, पृ० ६८१
५.
यादव - वही, पृ० १३६
६. अल्तेकर - राष्ट्रकूटाज़ ऐण्ड देयर टाइम्स, पूना, १६६७, पृ० २६५; कुमारपालप्रबन्ध पृ० ४२; इण्डियन ऐण्टीक्वटी ६, ८, १२
9. आर० एस० शर्मा - भारतीय सामन्तवाद, दिल्ली, १६७३, पृ० २
आर० एस० शर्मा - वही, पृ० २४-२५
अर्थशास्त्र १।६
राजबली पाण्डेय - हिस्टोरिकल ऐण्ड लिटरेरी इन्स्क्रिप्सन्स, नं० १६, १-३ लल्लनजी गोपाल – सामन्त : इट्स वैरिंग सिगनीफिकेन्स इन ऐंशेण्ट इण्डिया, जर्नल ऑफ द एशियाटिक सोसाइटी, अप्रैल १६६३
८
ई.
१०.
११.
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