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राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था
२०३ ग्रन्थों में वर्णित है कि प्रजा को कष्ट देने वाले अन्यायी राजा को अपना जीवन, कुटुम्ब एवं राज्य से हाथ धोना पड़ता था ।' अन्य ग्रन्थों में राजा को दण्डित करने की व्यवस्था करते हुए उल्लिखित है कि दुष्ट, अन्यायी, दुराचारी एवं अधर्मी राजा को बध कर देना न्यायसंगत होता है ।
ε. राजा का मंत्रिमण्डल : राज्य कार्य का संचालन अमात्यों के बिना सम्भव नहीं था, अतः उन्हें नियुक्त किया जाता था। सभी अमात्यों को मिलाकर मंत्रिमण्डल का निर्माण होता था । कौटिल्य ने मंत्रियों की सभा को 'परिषद्', बौद्ध जातकों में 'महावस्तु' तथा अशोक के शिलालेख में 'परिसा' वर्णित है ।' आधुनिक युग में परिषद् को ही मंत्रि-परिषद् या मंत्रि-मण्डल कहते हैं ।
जैन पुराणों के अनुसार मंत्रि-मण्डल के सदस्यों की निम्नतम संख्या चार एवं अधिकतम संख्या सात होती थी । जैनेतर साक्ष्यों से मंत्रिमण्डल की संख्या घटती-बढ़ती रहती थी । मनु ने मंत्रियों की संख्या आठ निर्धारित किया है ।" महाभारत में भी इनकी संख्या आठ ही वर्णित है । कौटिल्य और शुक्राचार्य ने दस मंत्रियों की व्यवस्था की है । यशस्तिलकचम्पू में एक से अधिक मंत्रियों को रखने का उल्लेख है ।
पद्म पुराण में उल्लिखित है कि मंत्रि-मण्डल का प्रधान मुख्यमंत्री होता था । इसके अधीनस्थ अन्य मंत्री होते थे । राजा धर्मासन पर बैठकर मंत्रियों के साथ विचार-विमर्श करता था ।" जैन पुराणों के अनुसार मंत्रीगण राजा के विभिन्न कार्यों
२.
१. तैत्तिरीय संहिता २|३|१; शतपथब्राह्मण १२।६।३।१ - ३ ; मनु ७।१११-११२ महाभारत शान्तिपर्व ६२।१६; मनु ७।२७-२८; विष्णुपुराण १।१३।२६ शुक्र ४१७१३३२-३३३
काशी प्रसाद जायसवाल - हिन्दू राजतन्त्र, दूसरा भाग, वाराणसी, सं० २०३४ पृ० ११३-११४
३
४.
५. मनु ७।५४
६. महाभारत शान्तिपर्व १२।८५
महा ४। १६० ; पद्म ८४८७
७. अर्थशास्त्र १।१५
८. शुक्रनीति २७०
१०.
£. के०के० हैंडीकी - यशस्तिलक ऐण्ड इण्डियन कल्चर, सोलापुर, १६६८, पृ०१०१ पद्म ७३ । २५; तुलनीय - मनु ७।१४१; महाभारत शान्तिपर्व ८ १।२१, विराटपर्व ६८।६; आरण्यपर्व ५७/१६; निशीथचूर्णी ३, पृ० ५७
पद्म १०६ । १४६; तुलनीय - - ज्ञाताधर्मकथा १, पृ० ३
११.
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