________________
राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था
आठ, अर्द्धमण्डलेश्वर चार, महाराज दो और राजा एक चमर बाँधते थे ।' महा पुराण के अनुसार भरत प्रथम चक्रवर्ती राजा थे और उन्होंने ही चक्रवर्ती प्रथा का प्रवर्तन किया था ।२ महा पुराण के अनुसार ३२,००० राजा चक्रवर्ती राजा के अधीनस्थ थे। चक्रवर्ती राजा द्वारा वीरचक्र बाँधने का उल्लेख अन्यत्र इसी पुराण में आया है। यह एक प्रकार का प्रमाण-पत्र था, जिसे सार्वभौम राजा धारण करते थे। महा पुराण' में ही युद्ध के आधार पर राजाओं के तीन वर्गों का वर्णन उपलब्ध है:
(i) लोभ विजय-उसे कहते हैं जिसमें कार्य के सिद्धार्थ दान दिया जाता था। (ii) धर्मविजय-वह है जिसमें शान्तिपूर्ण व्यवहार करते थे। (iii) असुर विजय--इसमें भेद एवं दण्ड का प्रयोग करते थे।
३. राजा के गुण : राज्य के उत्तरदायित्व को वहन करने के लिए राजा में ऐसे गुण होने चाहिए, जिससे कि वह राज्य का संचालन सम्यक् ढंग से सम्पन्न कर सके। इसी लिए प्राचीन मनीषियों ने राजाओं के गुणों का निर्धारण किया है। जैन आगमों तथा जैन पुराणों में राजाओं के गुणों का उल्लेख उपलब्ध है। इन ग्रन्थों के वर्णनानुसार राजा को जैन धर्म के रहस्य का ज्ञाता, शरणागत वत्सल, परोपकारी, दयावान्, विद्वान्, विशुद्ध हृदयी, निन्दनीय कार्यों से पृथक्, पिता के तुल्य प्रजारक्षक, प्राणियों की भलाई में तत्पर, शत्रुसंहारक, शस्त्रास्त्र का अभ्यासी, शान्ति कार्य में अथक्य, परस्त्री से विरत, संसार की नश्वरता के कारण धर्म में रुचि, सत्यवादी और जितेन्द्रिय होना चाहिए। पद्म पुराण में उल्लिखित है कि राजा को नीतिज्ञ, शूरवीर और अहंकार रहित होना चाहिए। महा पुराण में आत्मरक्षा करते हुए
१. महा २३॥६० २. वही ४५१५३ ३. वही ६।१६६ ४. वही ४३।३१३
वही ६८।३८४ जिनशासनतत्त्वज्ञः
शरणागतवत्सलः ।
x
X
सत्यस्थापितसद्वाक्यो बाढं नियमितेन्द्रियः ॥ पद्म ६८।२०-२४; महा ४।१६३;
तुलनीय-औपपातिकसूत्र ६, पृ० २० ७. पद्म २१५३
१३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org