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राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था
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पर - अशोक वृक्ष, दुन्दुभि, पुष्पवृष्टि, चमर, सिंहासन, अनुपम वचन, उच्चछत तथा भामण्डल- ये आठ चक्रवर्ती राजा के ऐश्वर्य निरूपित हैं ।' राजा का पद कुल परम्परा से प्राप्त होता था ।
२. राजा : उपाधियाँ एवं प्रकार : जैन पुराणों के अध्ययन से राजा की उपाधियों एवं उनके वर्गों के विषय में सम्यक् जानकारी मिलती है जिसका वर्णन निम्नवत् है :
(अ) उपाधियां : जैन पुराणों के अनुशीलन से राजाओं की उपाधियाँ ज्ञात होती हैं । उस समय राजागण अपनी शक्ति के अनुसार चक्रवर्ती', अर्द्धचक्रवर्ती, राजराजेश्वर', महामण्डलेश्वर', मण्डलेश्वर ", अर्द्ध - मण्डलेश्वर, महीपाल, नृप", राजा", भूप १२, महामाण्डलिक ", अधिराज", राजराज " राजेन्द्र ११, आदिराज", राजर्षि " अधिरात्", सम्राट् २०, लोकपालिन ( लोक रक्षक) २१
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आदि उपाधियाँ धारण
करते थे ।
जैनेतर स्रोत से भी उक्त प्रकार की राजाओं की उपाधियों का उल्लेख उपलब्ध है, जो उनकी शक्ति का द्योतक है। महाभारत में राजाओं के लिए राजन्, राजेन्द्र, राज्ञ, नृप, नृपति, नराधिप, नरेन्द्र, नरेश्वर, मनुष्येन्द्र, जनाधिप, जनेश्वर, पार्थिव, पृथ्वीश्वर,
१.
जयति तरूरशोको दुन्दुभिः पुष्पवर्ष, चमरिरूहसमेतं विष्टरे हमुद्यम् । वचनमसमुच्चैरातपत्रं च तेजः,
त्रिभवनजयचिन्हं यस्म सार्वो जिनोऽसौ |
२. गोलक्रमसमायातमिदं राजकुलं मम । ३. हरिवंश ५।२५२; महा ४५।५३
४. महा २३।६०
५. हरिवंश ११।२३ ६.
महा ४८।७४
७. वही २३।६०
८. वही २३।६०
६. वही ४१।६७
१०. वही ४।१३६; हरिवंश १६ । १६
११. वही ५२।२७; वही १६ । १६; पद्म ११।५८
१२ . वही ४।७०; वही १६ १६
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महा ३५।२४४ .
पद्म २६।६७
१३.
महा १६।२५७ १४. वही १६।२६२
१५. वही ३१।१४४
१६.
वही ३२ ६८;
पद्म २८२
१७.
१८.
१६.
२०.
२१.
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वही ३४ । ३४
वही ३४ । ३४
वही ३७/२०
वही ३७।२०
पद्म ७।६६
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