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सामाजिक व्यवस्था
आध्यात्मिक : इस शक्ति की अभिवृद्धि के लिए यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ, स्नानदर्शन, यात्रा शृंगार प्रभूति इसकी प्रथाएँ हैं । अन्य दृष्टि से मनोरञ्जन को दो भागों में विभक्त करते हैं : [ अ ] क्रीड़ा एवं [ब] गोष्ठी ।
[ अ ] क्रोड़ा : पद्म पुराण में क्रीड़ा को चार वर्गों में विभक्त किया गया - चेष्टा : शरीर से उत्पन्न क्रीड़ा चेष्टा कहलाती है । उपकरण : गेंद आदि साधन का जिन क्रीड़ाओं में उपयोग होता है, उसे उपकरण कहते हैं । वाक्-क्रीड़ा : सुभाषित आदि मुँह से व्यक्त किया जाता है । अतः इसे वाक्-क्रीड़ा की संता प्रदत्त की गयी है । कला - व्यत्यसन : जुआ आदि खेलने की आदत को कला - व्यत्यसन ( कला व्यासंग ) कहते हैं ।"
क्रीड़ास्थल के लिए पद्म पुराण में क्रीड़ाधाम शब्द प्रयुक्त हुआ है, जहाँ पर विभिन्न प्रकार के मनोरञ्जन एवं भोगोपयोग की वस्तुएँ उपलब्ध होती थीं । इस प्रकार के क्रीड़ाधाम रमणीय स्थानों में होते थे । पद्म पुराण में क्रीड़ाधाम की विस्तृत विवेचना है । जैन पुराणों में पर्वत-शिखरों पर क्रीड़ागृह निर्मित करने का उल्लेख उपलब्ध होता है ।"
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क्रीड़ा के प्रकार एवं स्वरूप : जैन पुराणों में अधोलिखित क्रीड़ाओं का उल्लेख उपलब्ध है :
(i) जलक्रीड़ा : इसका वर्णन जैन पुराणों में प्राचीन काल से उपलब्ध है । इस क्रीड़ा में स्त्री-पुरुष दोनों ही संयुक्त रूप में भाग लेते थे । इस क्रीड़ा में जलयन्त्रों का प्रयोग होता था । जल-यन्त्र की कला का इतना अधिक विकास हो चुका था कि उससे समुद्र का जल भी अवरुद्ध किया जा सकता था ।" नायक-नायिका के शृंगारिक क्रिया-कलापों का भी उल्लेख इस क्रीड़ा में उपलभ्य है । प्रेयसियों को खींचकर पकड़ना, उनका शारीरिक स्पर्श करना, पिचकारी से उनके मुख को सुगन्धित जल से सिञ्चित करना एवं जल में आभूषण का ढूँढ़ना आदि मुख्य हैं ।
१.
पद्म २४।६७-६८
२ . वही ४० । ४ - २४
३. हरिवंश ५।२०४; महा १२|३३
४.
महा १४ । २०४; पद्म १०।७१-१०८
पद्म १०१६८
मह। ८।२२-२८; पद्म ८ ६०-१००; तुलनीय - पूर्वमेघ ३७, रघुवंश १६।५८ - ६१; यशस्तिलकचम्पू ११५२६-५३३; शिशुपालबध ८।१-७८
५.
६.
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