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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
(ix) पर्वतारोहण-क्रीड़ा' : प्राचीन काल से ही लोगों में पर्वतारोहण की अभिलाषा थी। तीर्थस्थलों का पर्वतों पर निर्माण होना लोगों की उक्त इच्छा का द्योतक है। मनोरञ्जन के लिए क्रीड़ांचल बनाये जाते थे, जहाँ पर प्रेमी-प्रेमिकाएँ आमोद-प्रमोद किया करते थे।
(x) यूद्धक्रीड़ा : इस क्रीड़ा से भी लोगों का मनोरंजन होता था। वे भारस्वरूप युद्ध नहीं करते थे, बल्कि आनन्दार्थ करते थे। इसी लिए पद्म पुराण में युद्धक्रीड़ा के रूप में वर्णित है ।२ ।
(xi) इन्द्रजाल क्रीड़ा :प्राचीन काल से लोगों के मनोरंजनार्थ अलौकिक सिद्धियों द्वारा इन्द्रजाल का प्रचलन था।'
(vii) बाह्याली क्रीड़ा : बाह्याली क्रीड़ा में विनोदार्थ घोड़े, हाथी आदि जानवरों की दौड़, क्रीड़ा एवं युद्ध आदि होता था। राजा के साथ अन्तःपुर की रानियाँ, सामन्त, राजकुमार, मन्त्रीगण, उच्च अधिकारी सम्भ्रान्त नागरिक एवं विशिष्ट अतिथि आदि इसके अवलोकनार्थ क्रीड़ा-स्थल पर उपस्थित होते थे। हस्ति-क्रीड़ा, मेष-क्रीड़ा तथा कुक्कुट-युद्ध (मुर्गे की लड़ाई) द्वारा मनोरञ्जन किया जाता था। पद्म पुराण में बन्दर एवं भालू आदि के नृत्य द्वारा मनोविनोद किया करते थे। मन्मथ राय के अनुसार यह खेल आधुनिक पोलो है। सोमेश्वर कृत मानसोल्लास में बाजिवाह्यालि खेल से सम्बन्धित विवरण उपलब्ध है। इससे स्पष्ट है कि यह खेल उस समय प्रचलित था।
(xiii) अलौकिक क्रीड़ाएँ : यह क्रीड़ा विद्याधरों द्वारा की जाती थी। उनकी क्रीड़ाओं का उल्लेख जैन पुराणों में उपलभ्य है। उनकी क्रीड़ाओं में अनेक रूप
१. पद्म ६।२३०; हरिवंश ५।२४; महा १२।३३ २. वही ७५।२२ ३. वही २८।१६५ ४, वही ५।३५६ ५. महा ३७।४७; तुलनीय-समराइच्चकहा १, पृ० १६; निशीथचूर्णी २३-२४
मानसोल्लास ४।४।६६२-६६६ ६. मानसोल्लास ४।३।३३०-५६३, ४१४१७६७-८२७ ७. हरिवंश १६०६३-६६, ४७।१०६; महा ६३।१५२ ८. पद्म ६।११३-११६ ६. मन्मथ राय-वही, पृ० २६४
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