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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
विनोद होता था एवं इसके माध्यम से समय भी व्यतीत हो जाता था।
महा पुराण के अनुसार प्राचीन काल में पदगोष्ठी द्वारा व्याकरणों के साथ व्याकरण विषयक चर्चा हुआ करती थी। काव्यगोष्ठी के माध्यम से कवियों के साथ काव्य-वार्ता होती थी और जल्पगोष्ठी द्वारा अति वक्ताओं में वाद-विवाद होता था। इन गोष्ठियों से मनोरञ्जन के साथ ही ज्ञानार्जन भी होता था ।२ पद्म पुराण में शूरगोष्ठी और विद्वान्गोष्ठी का उल्लेख उपलब्ध है, जिससे ज्ञात होता है कि उस समय विभिन्न श्रेणी या वर्ग के लोग अपने-अपने स्तरानुसार गोष्ठी का आयोजन करके मनोरञ्जन के साथ-साथ सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रगति में सहयोग देते थे।' महा पुराण में वर्णित है कि सभी चौसठ कलाओं के प्रदर्शन, विश्लेषण, ज्ञानार्जन, एवं अनुरञ्जन के लिए कलागोष्ठियों का आयोजन करना उस समय के लोगों का प्रमुख उद्देश्य था। महा पुराण में वर्णित है कि जिस प्रकार कलागोष्ठी में मानकलाओं का, काव्यगोष्ठी में केवल काव्य का, पदगोष्ठी में एकमात्र व्याकरण का और कथागोष्ठी में पौराणिक कथाओं का ही निरूपण होता था, उसी प्रकार विद्यासम्बादगोष्ठी में एक साथ ही समस्त विद्याओं की वार्ता, परिचर्या एवं विवेचना हुआ करती थी । इन विद्याओं में कामशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, व्याकरण, गणित, ज्योतिष, भूगोल, दर्शन, काव्य, तथा खगोलशास्त्र आदि विषय प्रमुख थे।
जैन पुराणों में जहाँ एक ओर उपर्युक्त गोष्ठियों की चर्चा एवं माहात्म्य का वर्णन उपलब्ध है, वहीं पर मूर्खगोष्ठी को सर्वथा निन्दनीय एवं वर्जनीय वर्णित किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जिस प्रकार आजकल होली के अवसर पर मूर्खगोष्ठी का कहीं-कहीं आयोजन होता है, सम्भवतः उस समय भी किसी शुभावसर या विनोदपूर्ण अवसर पर ऐसी गोष्ठी का आयोजन किया जाता था । चूंकि यह गोष्ठी श्रेयस्कर नहीं थी, इसी कारण जैनाचार्यों ने इसे निषिद्ध बताया है।
१. महा १२।१८७; पद्म ३७।६३ २. कदाचित् पदगोष्ठीभिः काव्यगोष्ठीभिरन्यदा।
वावदूकः समं कैश्चित् जल्पगोष्ठीभिरेकदा ।। महा १४।१६१ ३. पद्म ५३।११३ ४. महा २६१६४ ५. वही ७१६५ ६. पद्म १५।१८४
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