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सामाजिक व्यवस्था
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धारण कर स्त्रियों के साथ क्रीड़ा करना, सूर्य सदृश सन्ताप उत्पन्न करना; चन्द्रमा तुल्य धवल चाँदनी, मेघ के समान वर्षा, अग्नि की भाँति ज्वाला उत्पन्न करना, वायु सदृश विशाल पर्वतों को गतिवान् करना, इन्द्र के समान प्रभुत्व स्थापित करना, समुद्र, पर्वत, अग्नि, हाथी का रूप धारण करना, क्षणभर में पास आना, क्षणभर में दूर जाना, क्षणभर में दृश्य होना, क्षणभर में अदृश्य होना, क्षणभर में सूक्ष्म, महान् एवं भयंकर रूपों को ग्रहण करना आदि मुख्य हैं ।'
[ब] गोष्ठी : प्राचीनकाल से मानसिक विकास एवं मनोरञ्जनार्थ साहित्यिक एवं कलात्मक गोष्ठी या परिषद् का आयोजन विविध प्रकार के विद्वानों एवं कलाकारों द्वारा किया जाता था।२ ये गोष्ठियाँ शिक्षाप्रद होती थीं तथा इनसे व्यक्तित्व का विकास होता था। ये गोष्ठियाँ सांस्कृतिक दृष्टि से समाज में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती थीं। पद्म पुराण में वर्णित है कि राजा अपनी पत्नियों सहित महल में सुन्दर गोष्ठी का आनन्द लेते थे ।' हरिवंश पुराण में उल्लिखित है कि पृथ्वी पर सर्वत्र नाना प्रकार के दिव्य एवं चित्ताकर्षक नृत्य, संगीत एवं वादिन आदि की गोष्ठियों द्वारा मनुष्य अपना मनोरञ्जन करता था।'
गोष्ठी का प्रकार एवं स्वरूप : आलोचित जैन पुराणों में गीत, नृत्य, वादित्र, वीणा, कथा, पद, काव्य, जल्प, शूर, विद्वान्, कला, पद, विद्या-सम्बाद, शास्त्र, मूर्ख आदि गोष्ठियों का उल्लेख मिलता है । इन गोष्ठियों के विषय में अधोलिखित अनुच्छेदों में वर्णन किया जा रहा है ।
महा पुराण में वर्णित है कि कथा-गोष्ठी में सत्पुरुषों के चरित्र का वर्णन होता था। इसके श्रवण से मनुष्य का पाप विनष्ट होता था और सत्पथ पर चलने की प्रवृत्ति होती थी। साथ-साथ बुद्धि का विकास भी होता था । कभी गीत-गोष्ठी, कभी नृत्यगोष्ठी, कभी वादित्रगोष्ठी और कभी वीणागोष्ठी के द्वारा लोग अपना मनबहलाव एवं समय व्यतीत किया करते थे। जैन पुराणों में आत्मीय जनों द्वारा मनो
१. पद्म ८८६-८६ २. धर्मेन्द्र कुमार गुप्त-सोसाइटी ऐण्ड कल्चर इन द टाइम ऑफ दण्डिन,
दिल्ली १६७२, पृ० २७५ ३. पद्म ६।३३६ ४. हरिवंश ५६०२० ५. महा १२।१८८, १४।१६२ ६. पद्म ११२३-३५, ३६।५; महा १२।१८७
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