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सामाजिक व्यवस्था
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वर्णित है कि यज्ञ के अवसर पर यजमान उष्णीष धारण करते थे। रघुवंश में अलकवेष्ठत, शिरसवेष्ठत, शिरस्त्रजाल शब्द उष्णीषार्थ प्रयुक्त हुए हैं। मिथुन मूर्ति में पुरुषाकृति उष्णीष धारण किये शृंगार-सज्जित अवस्था में एक स्थल पर नागार्जुनीयtetust कला में अंकित है ।
चीवर' : यह बौद्ध भिक्षुओं का परिधान है । प्रारम्भिक ब्रह्मचारी एवं श्रमण चीवर धारण करते थे । यह पीतवर्ग के रेशमी वस्त्र से निर्मित किया जाता था ।" मोती चन्द्र ने अपने ग्रन्थ 'प्राचीन भारतीय वेश-भूषा' में बौद्ध भिक्षुओं के प्रयोगार्थ तीन वस्त्रों का उल्लेख किया है - (1) संघाटी कमर में लपेटने की दोहरी लुंगी, (ii) अंतर वासक - ऊपरी भाग ढकने का वस्त्र और (iii) उत्तरासंग - चादर ।
परिधान : यह एक प्रकार का अधोवस्त्र होता था । परिधान शब्द से धोती का बोध होता है ।
कम्बल' : कम्बल का प्राचीनतम उल्लेख अथर्ववेद में उपलब्ध है । इसका प्रयोग सभी लोग करते थे । इसका प्रयोग रथ के पर्दे के निर्माण में भी होता था । " ह्वेनसांग के अनुसार यह भेंड़-बकरी के ऊन से निर्मित और मुलायम एवं सुन्दर होता था। "
रंग-बिरंगे कपड़े १२ : विभिन्न प्रकार के रंगीन वस्त्रों के प्रयोग का प्रचलन
था ।
१. मोती चन्द्र - वही, पृ० १६
२. सिद्धेश्वरी नारायण राय - पौराणिक धर्म एवं समाज, पृ० २६७
३. महा १1१४; हरिवंश ६।११५; कोसेय्य, साण तथा भंग नामक
४. हेमचन्द्र का व्याकरण ३।३।३ ५. वही ३|४|४
६. मोती चन्द्र - वही, पृ० ३५ महा ६।४८
७.
८. वही ४७।७६; हरिवंश ११।१२१ ८. अथर्ववेद १४ ।२।६६-६७
१०. हेमचन्द्र का व्याकरण ६।२।१३२ ११. वाटर्स - आन युवान च्वांग १, पृ० १४८ १२. हरिवंश ११।१२१
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महावग्ग ८|६|१४ में खोम, कप्पासिका, चीवरों का उल्लेख है ।
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