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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
जैन पुराणों में विभिन्न प्रकार की मणियों का वर्णन उपलब्ध है, जो निम्नवत् है: चन्द्रकान्तमणि', सूर्यकान्तमणि २, हीरा, वैदूर्यमणि, कौस्तुभमणि, मोती', वज्र (हीरा ), इन्द्रमणि' ( इन्द्रनीलमणि ) - [ इसके दो भेद हैं : महाइन्द्रमणि ( हल्के गहरे नीले रंग की ) तथा इन्द्रनीलमणि' ( हल्के नीले रंग की ) ], प्रवाल", गोमुखमणि", मुक्ता १२, स्फटिकमणि, मरकतमणि", पद्म रागमणि " जात्यञ्जय" (कृष्णमणि) पद्मराग" ( कालमणि ), " हैम ( पीतमणि ), मुक्ता" ( श्वेतमणि) आदि । आभूषण निर्माण में उक्त मणियों का प्रयोग होता था । उपर्युक्त वर्णन से यह प्रमाणित होता है कि इनमें से अधिकांश मणियाँ यहीं उपलब्ध होती थीं, परन्तु इनमें से कुछ मणियाँ आयातित होती थीं ।
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२. आभूषण के आकार-प्रकार : नर-नारी दोनों ही आभूषण प्रेमी होते थे । इनके आभूषणों में प्रायः साम्यतता परिलक्षित होती है । स्त्री-पुरुष दोनों ही कुण्डल, हार, अंगद, वलय, मुद्रिकादि आभूषण धारण करते थे । पुरुषों के प्रमुख आभूषण शिखामणि, किरीट एवं मुकुट थे । अंगानुसार पृथक्-पृथक् आभूषण धारण करने का प्रचलन था । इनका विस्तारशः विवरण निम्नवत् है :
[अ] शिरोभूषण : सिर को विभूषित करने वाले अलंकरणों में प्रमुख मुकुट, किरीट, सीमान्तकमणि, छत्र, शेखर, चूडामणि, पट्ट आदि हैं। महा पुराण के अनुसार सिन्दूर से तिलक भी लगाते थे । २०
१. हरिवंश २|७
२.
वही २८
३. वही २।१०
४. वही २।१०
५. वही ६२।५४
६. वही २1१०; महा ६८ ६७६
७.
पद्म ८० ७५; महा ३५।४२
5.
महा ५८/५६ पद्म ८० ७५; हरिवंश ७७२
६. हरिवंश २।५४
१०. महा १२/४४; ३५।२३४
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११.
महा १४।१४
१२.
१३.
वही ७।२३१, १५८१; हरिवंश ७/७३ वही १३।१५४; पद्म ८० ७५ १४. वही १३।१३८, हरिवंश २।१० वही १३।१३६; वही २२६
१५.
१६
१७.
१८.
१६.
२०.
हरिवंश ७/७२
वही ७।७२
वही ७७२
वही ७।७३
महा ६८।२५०
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