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सामाजिक व्यवस्था
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फलकहार ही मणिसोपान कहलाते थे। यदि फलकहार में मात्र तीन स्वर्णफलक होते थे तो वह सोपान संज्ञा से सम्बोधित होता था ।'
यदि हार के उक्त ग्यारह प्रकारों में प्रत्येक प्रकार के साथ यष्टि के पाँच प्रकारों-शीर्षक, उपशीर्षक, अवघाटक, प्रकाण्ड एवं तरल प्रबन्धको भी सम्मिलित कर लिया जाय तो इसके ५५ उपप्रकार हो जाते हैं। इनके निम्नांकित नाम हैं :
१. शीर्षक इन्द्रच्छन्द, २. शीर्षक विजयच्छन्द, ३. शीर्षक हार, ४. शीर्षक देवच्छन्द, ५ शीर्षक अर्द्धहार, ६, शीर्षक रश्मिकलाप, ७. शीर्षक गुच्छ. ८. शीर्षक नक्षत्रमाला, ६. शीर्षक अद्धंगुच्छ, १०. शीर्षक माणव, ११. शीर्षक अर्द्धमाणव, १२. उपशीर्षक इन्द्र च्छद, १३ उपशीर्षक विजयच्छन्द, १४. उपशीर्षक हार, १५. उपशीर्षक देवच्छन्द, १६. उपशीर्षक अद्ध हार, १७. उपशीर्षक रश्मिकलाप, १८. उपशीर्षक गुच्छ, १६. उपशीर्षक नक्षत्रमाला, २०. उपशीर्षक अर्द्ध गुच्छ, २१. उपशीर्षक माणव, २२. उपशीर्षक अर्द्ध माणव; २३. अवघाटक इन्द्रच्छन्द, २४. अवघाटक विजयच्छन्द, २५. अवघाटक हार, २६. अवघाटक देवच्छन्द, २७. अवघाटक अर्द्धहार, २८. अवघाटक रश्मिकलाप, २६. अवघाटक गुच्छ, ३०. अवघाटक नक्षत्रमाला, ३१. अवघाटक अर्द्धगुच्छ, ३२. अवघाटक माणव, ३३. अवघाटक अर्द्धमाणव; ३४. प्रकाण्डक इन्द्रच्छन्द, ३५. प्रकाण्डक विजयच्छन्द, ३६ प्रकाण्डक हार, ३७. प्रकाण्डक देवच्छन्द, ३८. प्रकाण्डक अर्द्धहार, ३६. प्रकाण्डक रश्मिकलप, ४०. प्रकाण्डक गुच्छ, ४१. प्रकाण्डक नक्षत्रमाला, ४२. प्रकाण्डक अर्द्ध गुच्छ, ४३. प्रकाण्डक माणव, ४४. प्रकाण्डक अर्द्ध माणव; ४५. तरलप्रबन्ध इन्द्रच्छन्द, ४६. तरलप्रबन्ध विजयच्छन्द, ४७. तरल प्रबन्ध हार, ४८. तरलप्रबन्ध देवच्छन्द, ४६. तरलप्रबन्ध अर्द्ध हार, ५०. तरलप्रबन्ध रश्मिकलाप, ५१. तरलप्रबन्ध गुच्छ, ५२. तरलप्रबन्ध नक्षत्रमाला, ५३. तरलप्रबन्ध अर्द्ध गुच्छ, ५४. तरलप्रबन्ध माणव, ५५. तरलप्रबन्ध अर्द्ध माणव ।२ ।
डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री के मतानुसार-इन्द्रच्छन्द, विजयच्छन्द, देवच्छन्द, रश्मिकलाप, गुच्छ, नक्षत्रमाला, अर्द्ध गुच्छ, माणव, अर्द्ध माणव, इन्द्रच्छन्द माणव, विजयच्छन्द माणव-यष्टि के ग्यारह भेद हैं । इन्हें शीर्षक, उपशीर्षक, अवघाटक, प्रकाण्डक, तथा तरलप्रबन्ध, आदि भेदों में विभक्त करने पर इनकी संख्या ५५ होती है।' शास्त्री का मत असंगत प्रतीत होता है। क्योंकि उपर्युक्त ग्यारह कथित भेद १. महा १६।६५-६६ २. वही १६।६३-६४ ३. नेमिचन्द्र शास्त्री-आदि पुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० २१६
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