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सामाजिक व्यवस्था
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(i) अंगद : इसे भुजाओं पर बाँधा जाता था । इसको स्त्री-पुरुष दोनों ही थे । अंगद के समान केयूर का प्रयोग जैन ग्रन्थों में वर्णित है । अमरकोशकार ने अंगद और केयूर को एक-दूसरे का पर्याय स्वीकार किया है । क्षीरस्वामी ने केयूर और अंगद की व्युत्पत्ति करते हुए लिखा है कि 'के बाहूशीर्षे यौति केयूरम्' अर्थात् जो भुजा के ऊपरी छोर को सुशोभित करे उसे केयूर कहते हैं और 'अंगं दयते अंगदम्' अर्थात् जो अंग को निपीड़ित करे वह अंगद है । २
(ii) केयूर' : स्त्री-पुरुष दोनों ही अपने भुजाओं पर केयूर ( अंगद या निर्मित होते थे । जिस पर लोग
केयूर ) धारण करते थे । यह स्वर्ण एवं रजत अपने स्तर के अनुसार मणियाँ भी जड़वाते थे पर हुआ है। केयूर में नोक भी होती थी ।" अलंकार के अन्तर्गत किया है । "
।
हेम केयूर का भी उल्लेख कई स्थलों भर्तृहरि ने केयूर का प्रयोग पुरुषों के
(iii) मुद्रिका (अँगूठी ) : यह हाथ की अंगुली में धारण करने का आभूषण मुद्रिका है। इसका प्रयोग स्त्री-पुरुष समानत: करते । प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में स्वर्णघटित, रत्नजटिल, पशु-पक्षी, देवता - मनुष्य एवं नामोत्कीर्ण मुद्रिका का उल्लेख उपलब्ध होता है ।" पद्म पुराण में अँगूठी के लिए उर्मिका शब्द प्रयुक्त हुआ है ।" त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र में भी स्त्री के आभूषण के रूप में अँगूठी का वर्णन प्राप्य
है ।
(iv) कटक " : प्राचीत काल से हाथ में स्वर्ण, रजत, हाथीदाँत एवं शंख
१. महा ५।२५७, ६।४१, १४ १२, १५/१६६ हरिवंश ११।१४
२
गोकुल चन्द्र जैन - यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १४७ ३. महा ६८ ६५२, ३।१५७, ६।४१, १५/१६६ हरिवंश ७८६ पद्म ३२,
३।१६०, ८।४१५, ११।३२८, ८५१०७, ८८।३१ रघुवंश ७।५०
नरेन्द्र देव सिंह - भारतीय संस्कृति का इतिहास, पृ० ११५
रघुवंश ७।५०
४.
५.
६
भर्तृहरिशतक २।१६
७. हरिवंश ४६ । ११; महा ७।२३५, ४७ २१६, ४६ । १६७, ६८।३६७; पद्म ३।१६५
८. पद्म ३३।१३१; तुलनीय - रघुवंश ६।१८
६. ए० के० मजूमदार – चालुक्याज़ ऑफ गुजरात, पृ० ३५६
१०.
पद्म ३।३; हरिवंश ११।११; महा ७।२३५, १४/१२, १६।२३६; तुलनीय - मालविकाग्निमित्रम्, अंक २, पृ० २८६
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