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सामाजिक व्यवस्था
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(11) स्तनांशुक' : यह 'अंगिया' की भाँति का वस्त्र होता था। यह रेशमी वस्त्र का टुकड़ा होता था, जिसको स्तन पर सामने से ले जाकर पीछे पीठ पर गाँठ बाँधी जाती थी। कालान्तर में इसे स्तन-पट्ट भी कहा गया है। इसका प्रमाण गुप्तकालीन चित्रों में स्तन-पट्ट धारण किये हुए स्त्रियों के चित्रण से उपलभ्य होता है ।
(iii) उज्ज्वलांशूक' : इस प्रकार के रेशमी वस्त्र को स्त्रियां साडी की भाँति धारण करती थीं।
(iv) सदंशुक : यह स्वच्छ, श्वेत, सूक्ष्म एवं स्निग्ध रेशमी वस्त्र होता था। तीर्थकर भी इसको धारण करते थे ।
(v) पटांशुक : महीन, धवल एवं सादे रेशमी वस्त्र की संज्ञा पटांशुक थी।' समराइच्चकहा में इसको पटवास वर्णित किया गया है। यह सूती एव सस्ता वस्त्र था। इसकी अपेक्षा पटांशुक बहुमूल्य वस्त्र था।
क्षौम : यह अत्यन्त महीन एवं सुन्दर वस्त्र था । यह अलसी की छाल-तन्तु से निर्मित होता था। वासुदेव शरण अग्रवाल के विचारानुसार यह असम एवं बंगाल में उत्पन्न होने वाली एक प्रकार की घास से निर्मित किया जाता था। काशी और पुण्ड्रदेश का क्षौम प्रसिद्ध था । १९ ।
कंचुक १२ : इसकी साम्यता चोली या अंगिया से कर सकते हैं। गान्धार कला में स्त्रियों को साड़ी के ऊपर या नीचे कंचुक धारण किये हुए प्रदर्शित किया गया
१. महा ८।८, १२।१७६ २. मोती चन्द्र-वही, पृ०२३ ३. महा ७।१४२ ४. वही १६।२३४ ५. वही ११।४४; पद्म ३।१२२ ६. मोती चन्द्र--वही, पृ० ६५ ७. वासुदेव शरण अग्रवाल-हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० ७६ ८, महा १२।१७३ ६. मोती चन्द्र-वही, पृ० ५ १०. वासुदेव शरण अग्रवाल-हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० ७६ ११. मोती चन्द्र-वही, पृ० ६ १२. पद्म २।४६ . १०
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