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________________ सामाजिक व्यवस्था १४७ वर्णित है कि यज्ञ के अवसर पर यजमान उष्णीष धारण करते थे। रघुवंश में अलकवेष्ठत, शिरसवेष्ठत, शिरस्त्रजाल शब्द उष्णीषार्थ प्रयुक्त हुए हैं। मिथुन मूर्ति में पुरुषाकृति उष्णीष धारण किये शृंगार-सज्जित अवस्था में एक स्थल पर नागार्जुनीयtetust कला में अंकित है । चीवर' : यह बौद्ध भिक्षुओं का परिधान है । प्रारम्भिक ब्रह्मचारी एवं श्रमण चीवर धारण करते थे । यह पीतवर्ग के रेशमी वस्त्र से निर्मित किया जाता था ।" मोती चन्द्र ने अपने ग्रन्थ 'प्राचीन भारतीय वेश-भूषा' में बौद्ध भिक्षुओं के प्रयोगार्थ तीन वस्त्रों का उल्लेख किया है - (1) संघाटी कमर में लपेटने की दोहरी लुंगी, (ii) अंतर वासक - ऊपरी भाग ढकने का वस्त्र और (iii) उत्तरासंग - चादर । परिधान : यह एक प्रकार का अधोवस्त्र होता था । परिधान शब्द से धोती का बोध होता है । कम्बल' : कम्बल का प्राचीनतम उल्लेख अथर्ववेद में उपलब्ध है । इसका प्रयोग सभी लोग करते थे । इसका प्रयोग रथ के पर्दे के निर्माण में भी होता था । " ह्वेनसांग के अनुसार यह भेंड़-बकरी के ऊन से निर्मित और मुलायम एवं सुन्दर होता था। " रंग-बिरंगे कपड़े १२ : विभिन्न प्रकार के रंगीन वस्त्रों के प्रयोग का प्रचलन था । १. मोती चन्द्र - वही, पृ० १६ २. सिद्धेश्वरी नारायण राय - पौराणिक धर्म एवं समाज, पृ० २६७ ३. महा १1१४; हरिवंश ६।११५; कोसेय्य, साण तथा भंग नामक ४. हेमचन्द्र का व्याकरण ३।३।३ ५. वही ३|४|४ ६. मोती चन्द्र - वही, पृ० ३५ महा ६।४८ ७. ८. वही ४७।७६; हरिवंश ११।१२१ ८. अथर्ववेद १४ ।२।६६-६७ १०. हेमचन्द्र का व्याकरण ६।२।१३२ ११. वाटर्स - आन युवान च्वांग १, पृ० १४८ १२. हरिवंश ११।१२१ Jain Education International महावग्ग ८|६|१४ में खोम, कप्पासिका, चीवरों का उल्लेख है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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