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________________ १४८ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन उपसंव्यान' : यह शब्द धोती का बोधक है। अमरकोश में धोती के पर्यायार्थक चार शब्द-अन्तरीय, उपसंव्यान, परिधान और अधोंशुक-उपलब्ध हैं । ___ वल्कल' : वैदिक काल से इसका प्रयोग प्रचलित है। आश्रमवासी, तपसी एवं साधु वल्कल धारण करते थे। मोती चन्द्र ने छाल के वस्त्र को वल्कल वर्णित किया है। बौद्ध भिक्षुओं के लिए इस प्रकार के वस्त्र भी अविहित थे। बाणभट्ट ने वल्कल वस्त्र का प्रयोग उत्तरीय और चादर के लिए किया है। हर्षचरित में बाणभट्ट ने सावित्री को कल्पद्रुम की छाल-निर्मित वल्कल वस्त्र धारण किये हुए उल्लेख किया है। . दुष्यकुटी या देवदूष्य' : इसका मुख्यतः प्रयोग तम्बू के निर्माणार्थ किया जाता था। इसके अतिरिक्त इससे चादर एवं तकिया भी निर्मित होता था। वासुदेव शरण अग्रवाल के मतानुसार स्तूप पर चढ़ाये जाने वाले बहुमूल्य वस्त्र देवदूष्य कहलाते थे । ' भगवतीसूत्र में देवदूष्य को एक प्रकार का देवी वस्त्र कथित है, जिसे भगवान् महावीर ने धारण किया था।" दुकूल" : निशीथचूर्णी में वर्णित है कि दुकूल का निर्माण दुकूल नामक वृक्ष की छाल को कूटकर उसके रेशे से करते थे। १२ यह श्वेत रंग का सुन्दर एवं बहुमूल्य वस्त्र होता था। गौड़देश (बंगाल) में उत्पादित एक विशेष प्रकार के कपास से निर्मित १. महा १३।७० २. अमरकोश २।६।११७ ३. महा १७; पद्म ३।२६६; हरिवंश ६।११५ ४ अभिज्ञानशाकुन्तल, अंक १, १६ पृ० १३; कुमारसम्भव ६।६२, समराइच्चकहा ७, पृ० ६४५ ५. मोती चन्द्र-वही, पृ० ३१ ६. हर्षचरित १, पृ० ३४; कादम्बरी पृ० ३११, ३२३ ७. वही, पृ० १० ८. महा ८।१६१, २७।२४, ३७।१५३ ६. वासुदेव शरण अग्रवाल-वही, पृ० ७५ १०. भगवतीसूत्र १५।१।५४१ ११. पद्म ७।१७१; हरिवंश ७।८७, ११।१२१; महा ६।६६ ६।२४, ११।२७, १२. निशीथचूर्णी ७, पृ० १०-१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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