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. जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
पद्म पुराण से स्पष्ट है कि निर्दोष, विनय को धारण करने वाली सुन्दर और । उत्तम चेष्टाओं से युक्त घर की लड़की सबको प्रिय होती है । जैन पुराणों के कथनानुसार शैशव की आधार शिला पर जीवन का स्वरूप निर्मित होता है। बच्चों का लालन-पालन के साथ ही शिक्षा द्वारा उनका मानसिक स्तर ऊँचा उठाते थे। लड़के
और लड़कियों को साथ ही साथ शिक्षा दी जाती थी। लड़कियों की शिक्षा पर विशेष बल दिया गया है।२ लड़कियाँ गणित, वाङमय (व्याकरण, छन्द एवं अलंकार शास्त्र) आदि समस्त विद्याएँ और कलाएँ गुरु या पिता के आग्रह से प्राप्त करती थीं।
जैनेतर साक्ष्यों से कन्याओं की स्थिति पर प्रकाश पड़ता है। लड़कियों को दो भागों में बाँट सकते हैं ब्रह्मवादिन-ये आजीवन ब्रह्मचारिणी रहकर सिद्धान्त दर्शन आदि का अध्ययन किया करती थीं और सद्योदवाहा-इस प्रकार की लड़कियाँ अपने जीवन के लिए आवश्यक शिक्षा ग्रहण कर विवाह करती थीं। नवों शती ई० में स्त्रियों की शिक्षा राजपरिवार, कर्मचारी, धनी तथा नर्तकी परिवारों तक सीमित रह गया। इसका दृष्टान्त तत्कालीन संस्कृत के नाटकों में मिलता है। सन् १००० ई० के आस-पास ३० प्रतिशत से अधिक पुरुष और १० प्रतिशत से कम स्त्रियाँ शिक्षित थीं। संगीत, नृत्य एवं चित्रकला का ज्ञान लड़कियों को प्रारम्भ काल से कराया जाता था। शासक वर्गीय लड़कियाँ सैनिक एवं प्रशासनिक शिक्षाएँ ग्रहण करती थीं।
महा पुराण के अनुसार बालाएँ जब तक कन्या-व्रत में रहती हैं, तब तक अन्य का नाम भूल से भी नहीं लेतीं । पाण्डव पुराण में वर्णित है कि कुलीन कन्या पति का स्वयं वरण नहीं करतीं। पद्म पुराण में उल्लिखित है कि कन्याएँ पिता की आज्ञानुसार चलती हैं। इसी लिए पिता की आज्ञा के बिना शिक्षा की समाप्ति और
१. पद्म १७१५३ २. महा १६।१०२; पद्म ६४।६१ ३. वही १६।१०५-११७; वही १५।२०, २४१५; तुलनीय-रामायण १५।४८ ४. अल्तेकर-वही, पृ० १३ ५. अल्तेकर-वही पृ० २१-२५ ६. महा ४६।१३ ७. पाण्डव ७८६ ८. वही ७।१६१
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