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सामाजिक व्यवस्था
(vii) गुण-दोष : पदार्थों के गुण-दोष का ज्ञान ही गुण-दोष विज्ञान कहलाता है ।
(viii) कौशल : परकीय तथा स्वकीय वस्तु की विशिष्टता का ज्ञान होना ही कौशल है ।
४. निषिद्ध भोजन (आहार) : जैन पुराणों में कतिपय आहारों के निषेध का वर्णन प्राप्य है । जैन शास्त्रानुसार शंकित, अभिहृत, उद्दिष्ट एवं क्रय - क्रीत आदि प्रकार के आहारों का किसी भी स्थिति में न ग्रहण करने का विधान है ।" महा पुराण में मांसाहारी व्यक्ति को सर्वघाती सम्बोधित कर मांसाहार का निषेध किया गया है । इसी प्रकार का उल्लेख अन्य स्थल पर आया है कि रक्तपान और मांसाहार से मनुष्य अधोमुख ( नीचामुख ) होकर नरकगामी होता है । मधु एवं मांस भक्षक ब्राह्मण को अधर्मी कहने से पूर्व कथित पदार्थों का निषेध ध्वनित होता है । आर्यं पुरुषों के मद्यपान का निषेध महा पुराण में उपलब्ध है ।" यद्यपि मांसाहार का निषेध होने पर भी वे गुप्तत: मांसाहारी थे । पशुमांस अनुपलब्ध होने पर महामांस ( नरमांस ) के भक्षण का उल्लेख पद्म पुराण में प्राप्य है ।" महा पुराण के अनुसार मसाला युक्त कड़वी तुमड़ी का आहार ग्रहण करने से मृत्यु होने का उल्लेख है, अर्थात् कड़वी तुमड़ी विषैली होती है ।"
५.
भोजन सामग्री या खाद्यान्न : जैन पुराणों में निम्नलिखित अन्नों का उल्लेख उपलब्ध है :
नीवार' : यह वन में स्वतः उत्पन्न होने वाला निकृष्ट प्रकार का चावल है । इसे आधुनिक काल में तिन्नी का चावल भी सम्बोधित करते हैं । इसकी गणना फलाहार में होती है ।
१. शङ्किताभिहृतोद्दिष्ट क्रयक्रीतादि लक्षणम् ।
सूत्रे निषिद्धमाहारं नैच्छन्प्राणात्ययेऽपिते ॥ महा ३४ । १६६ २. महा ३६ । २६ तुलनीय - गरुड़ पुराण १।१०५-१५७ ३. अधोमुखाः खगैमुक्ता रक्तपानात् पलाशनात् । महा ४४।१४६; तुलनीय - उपनिषद् ८।१५।१; भागवत पुराण ७।१५।७-८ महा ४११५१
४.
५. वही ६।३७
६.
पद्म २२।१३७-१४०
७. महा ७१।२७५
८.
वही ३|१८६ तुलनीय - अभिज्ञानशाकुन्तल, अंक २, पृ० ६५; रघुवंश १।५०
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पृ० ३५ अंक ४,
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