________________
१३२
जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
दाल, रोटी आदि), (ii) पानक (दूध तथा जल आदि पेय पदार्थ), (ili) खाद्य (खाने योग्य पदार्थ लड्डू आदि) एवं (iv) स्वाद्य (पान-सुपारी आदि स्वाद वाले पदार्थ) आदि चार प्रकार के आहार वर्णित हैं।' महा पुराण के अन्तर्गत भोज्य-सामग्री का अन्य वर्गीकरण खाद्य, स्वाद्य तथा भोज्य वर्णित किया गया है ।
जैन पुराणों में रस को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। कटु . (कड़वा), अम्ल (खट्टा), तिक्त (तीखा या चटपटा), मधुर (मीठा), कषाय (कसैला) एवं लवण (खारा) आदि षड्रसों का उल्लेख जैन,पुराणों में उपलब्ध हैं। पद्म पुराण में भी पंचरसों-कसैला, मधुर, चटपटा, कडुवा तथा खट्टा--का वर्णन प्राप्य है।
३. भोजन निर्माण कला : पद्म पुराण में सुगन्धित भोजन निर्माण कला के अंग-योनिद्रव्य, अधिष्ठान, रस, वीर्य, कल्पना, परिकर्म, गुण-दोष तथा कौशलआदि का वर्णन है। इनका सविस्तार वर्णन अग्रलिखित है :
(i) योनिद्रव्य : इससे तगर आदि सुगन्धित पदार्थ निर्मित किये जाते हैं।
(ii) अधिष्ठान : इसके अन्तर्गत वे पदार्थ आते हैं, जिनके निर्माण में धूपबत्ती का आश्रय लेते हैं।
(ii) रस : इसमें कसैला, मधुर, चटपटा, कडुवा एवं अम्लादि पंचरस होते हैं, जिनकी मात्रा सुगन्धित द्रव्यानुसार निर्धारित करना पड़ता है।
(iv) वीर्य : पदार्थों की उष्णता या शीतलता को ही वीर्य कहते हैं । (v) कल्पना : अनुकूल एवं प्रतिकूल पदार्थों को मिश्रित करना ही कल्पना है। (vi) परिकर्म : वह क्रिया है जिससे पदार्थों को शोधते या धोते हैं । १. अशनं पानकं खाद्य स्वाद्यम् चान्नं चतुर्विधम् । महा ६।४६;
हरिवंश ७।८५ २. महा २०१२४ ३. कट्वाम्लतिक्तमधुरकषायलवणा रसाः। महा ६५६, हरिवंश ७/८५;
पद्म ५३१३६ ४. कषायो मधुरातिक्तः कटुकाम्लञ्च कीर्तितः ।
रस पञ्चविधो यस्य निहारेण विनिश्चयः ।। पद्म २४।४६ ५. योनिद्रव्यमधिष्ठानं रसो वीर्य च कल्पना ।
परिकर्म गुणा दोषा युक्तिरेषातु कौशलम् ।। पद्म २४।४७ ६. पद्म २४१४८-५१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org