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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
[ज] भोजन-पान (आहार)
जैन पुराण अहिंसा प्रधान जैन संस्कृति की पृष्ठभूमि पर प्रणीत हैं । इसलिए स्वभावतः जैन पुराणकारों ने भोजन-पान की शुद्धता एवं सात्त्विकता पर विशेष बल दिया है । भोजन-पान शरीर के सम्पोषणार्थं अपेक्षित हैं, किन्तु इसके लिए भक्ष्याभक्ष्य का विवेक अनिवार्य है ।
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जैन पुराणों में भोजन-पान विषयक जो विधान उपलब्ध हैं, उनसे प्रमाणित होता है कि उनके प्रणेताओं ने शाकाहार पर पूर्णतः बल दिया है । यही कारण है कि जहाँ भी मांसाहार के उल्लेख हैं, वहाँ उसे सामाजिक और धार्मिक दोनों ही दृष्टियों से गर्हित बताया गया है ।
१. भोजन (आहार) के नियम निर्देश : हरिवंश पुराण एवं महा पुराण में दस प्रकार के भोगों - भाजन, भोजन, शय्या, सेवा, वाहन, आसन, निधि, रत्न, नगर एवं नाट्य- का वर्णन उपलब्ध है ।" महा पुराण में आहार पदार्थों को शुद्ध माना गया है । आहार विषयक नियम यह था कि स्नानान्तर उच्चासन पर बैठ कर भोजन ग्रहण करना चाहिए ।
अहिंसा प्रधान धर्म होने के कारण जैन पुराणों में शाकाहार पर अधिक बल दिया गया है । जहाँ मांसाहार के उल्लेख उपलब्ध हैं, वहाँ सामाजिक एवं धार्मिक दृष्टि से इसे गर्हित एवं निन्दित माना गया है ।' यद्यपि कतिपय प्रसंगों (विवाहोत्सव ) में मांसाहार प्रचलित था । पद्म पुराण में दिन में रवि रश्मि से प्रकाशित सुपवित्र, मनोहर, पुण्य एवं आरोग्यवर्धक आहार ग्रहण करने की प्रशंसा की गयी है । इसी पुराण में अहिंसा की रक्षा के उद्देश्य से ही रात्रि समय में भोजन ग्रहण करने का
१.
भाजनं भोजनं शय्या चमूर्वाहनमासनम् ।
निधि रत्नपुरम् नाट्यं भोगस्तस्य दशाङ्ककाः ।। हरिवंश ११।१३१;
महा ५४ ।११६
२.
महा २०१८६
३. वही २० २१, २०१८६; पद्म ५३।१३६
४. पद्म १४।२६६
५. हरिवंश ५५।८६
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रविरश्मिकृतोद्योतं सुपवितं मनोहरम् । पुण्यवर्धन मारोग्यं दिवाभुक्तं प्रशस्यते ॥ पद्म ५३।१४१
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