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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
द्वितीय प्रकार की वेश्याएँ शरीर बेचकर जीवन निर्वाह करती थीं। इनके विषय में हरिवंश पुराण में वर्णित है कि उन्हें देखकर मुनि भी भ्रष्ट हो जाते थे। पद्म पुराण में निरूपित है कि वेश्या और कुलटा स्त्रियों की सेविकाएँ उनके लिए पुरुष का प्रबन्ध करती थीं । उक्त पुराण में उल्लिखित है कि वेश्याओं के यहाँ 'विट' रहते थे जिन्हें हिंजड़ा कहा जा सकता है। महा पुराण में वर्णित है कि नदी के समान वेश्याएँ विशिष्ट पाप के सहित, ग्राहवती (धन संचय करने वाली), कुटिलवृत्ति (मायाचारिणी), अंलध्य (विषयी मनुष्यों द्वारा वशीभूत) सर्वभोग्या (ऊँच-नीच मनुष्यों द्वारा भोग्य योग्य), विचित्रा (अनेक वर्ण की), एवं निम्नगा (नीच पुरुषों की ओर जाने वाली) होती थीं। जैन पुराणों के अनुसार वेश्या जुआ आदि छल विद्या से पुरुषों को फँसा कर स्वगृह में रखती थीं और पुरुषों से धन चूसती थीं । धनवान ही वेश्या के मित्र होते थे। जिस प्रकार लोग रसहीन ईख के छिलके को छोड़ देते है, वैसे ही धनरहित मनुष्य को वेश्या छोड़ देती हैं ।" इसी लिए समराइच्चकहा में धन को वेश्याओं का पति कहा गया है । वेश्याओं को धनी, राजा, राजा के सम्बन्धी एवं सम्पन्न व्यक्ति धन एवं आभूषण आदि देते थे। हरिवंश पुराण में उल्लिखित है कि वेश्याएँ मद्यशाला में मद्य-क्रय भी किया करती थीं। पद्म पुराण में गणिकाओं का उल्लेख हुआ है । वेश्याओं पर विश्वास न करने की सलाह जैन सूत्रों में उपलब्ध है। हरिवंश पुराण के अनुसार वेश्याओं का भी
१. हरिवंश २७४१०१; तुलनीय-मृच्छकटिक अंक १ २, वेश्यायाः कुलटानां कि कुर्वन्ति परिचारिकाः । पद्म १७१० ३. पद्म २।४३ ४. महा ४७३ ५. हरिवंश २११५६-६६; महा ५०।४८; तुलनीय-मृच्छकटिक, अंक ४
झिनकू यादव-समराइच्चकहा एक सांस्कृतिक अध्ययन, वाराणसी, १६७७,
पृ० १४१ ७. महा ४६।३००-३०८, तुलनीय-याज्ञवल्क्य २।२६२; मत्स्यपुराण २२७।
१४४-१४५ ८. हरिवंश ३३।१६ ६. पद्म ८।१६२ १०. आचारांगचूर्णी २, पृ० ६७; सूत्रकृतांगटीका ४।१।२४; तुलनीय-मनुस्मृति
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