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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
गया है कि - दोषों को पूछना ही क्या है ? वे तो स्त्री स्वरूप ही हैं या दोषों की उत्पत्ति स्त्रियों में है अथवा दोषों से स्त्रियों की उत्पत्ति होती है । इस बात का निश्चय इस संसार में किसी को नहीं हुआ है ।' पद्म पुराण में वर्णित है कि स्त्रियाँ स्वभाव से ही कुटिल होती हैं, इसी लिए उनका चित्त पर पुरुष में लगा रहता है । २ यही कारण है कि सब स्त्रियों में सदाचार नहीं पाया जाता। इसी पुराण में वर्णित है कि संसार में ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसे खोटी स्त्रियाँ नहीं कर सकती हों । यहाँ तक कि वे अपने पुत्र के साथ व्यभिचार भी कर सकती हैं। जैन आगम के अनुसार स्त्रियाँ पुरुषों को आठ प्रकार से बाँधती हैं -- रोना, हँसना, बोलना, एक तरफ हटना, भ्रूभंग करना, गन्ध, रस तथा स्पर्श ।" इसी लिए महा पुराण में वर्णित है कि कमल के पत्ते के ऊपर पानी के समान स्त्रियों का चित्त किसी पुरुष पर स्थिर नहीं रहता । स्त्रियाँ लालची होती हैं, इसी कारण उनकी लोलुप्तता को. धिक्कारा गया है ।" स्त्रियों की इच्छाएँ दूषित होती हैं, जिससे उनके चारों ओर विषम विष भरा रहता है ।" स्त्रियाँ इतनी अधिक ठग होती हैं कि वे इन्द्रसहित बृहस्पत्ति को भी ठग लेती हैं, इसी कारण उन्हें मायाचार की जननी कहा गया है। स्त्रियाँ दोष स्वरूप और चंचल स्वभाव की होती हैं ।" महा पुराण में वर्णित है कि
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१. दोषाः किं तन्मयास्तासु दोषाणां किं समुद्भवः ।
तासां दोषेभ्य इत्यत्र न कस्यापि विनिश्चयः ॥ महा ४३ । १०६ स्वभावानिता जिह्न विशेषादन्यचेतसः । पद्म ११०।३१;
तुलनीय - मनु २।२१३-२१४; उत्तराध्ययनटीका ४, पृ० ८३ महाभारत, अनुशासनपर्व ४८ । ३७-३८
पद्म ८०।१५४; तुलनीय - महाभारत, अनुशासनपर्व, १६।४३ अकार्यमवशिष्टं यत्तन्नास्तीह कुपोषितम् ।
मुक्त्वां पुत्राभिलाषित्वमेतदप्येतया वृत्तम् || महा ७२।६१;
२.
३.
४.
तुलनीय - मनु ६ । १४ - १५; आवश्यकचूर्णी २, पृ० ८१, १७०; बृहत्कल्पभाष्य ४।५२२०-५२२३, कथासरित्सागर, जिल्द ७, पृ० ११६
५. अनुत्तरनिकाय ३८, पृ० ३०६
६.
अम्भो वाग्भोजपत्रेषु चित्तं तासां न केषुचित् । महा ७२१६३ ....... धिक् तासां वृद्धगृध्नुताम् । महा ४३।१०३
योषितां दूषितेच्छानां विश्वतो विषमं विषम् । महा ४३।१०४
७.
८.
E. महा ४३।१०७
५०. वही ४३।१११
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