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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
२. स्त्रियों को संरक्षण : स्त्रियाँ स्वभाव से भीरु होती हैं, जिसके कारण पुरुष उसे मारता पीटता है । जैनाचार्यों ने इस अत्याचार के विरोध में आवाज उठायी और यह व्यवस्था किया कि जो स्त्रियों को मारेगा वह निन्दित समझा जायेगा । २ रविषेणाचार्य ने कहा है कि पुरुषों द्वारा स्त्रियों के शोषण की इतिश्री यहीं पर नहीं होती, अपितु वह कुछ दीनारों में स्त्रियों को बेचता भी था। इन अत्याचारों के विरोध में जैनाचार्यों ने स्त्रियों को संरक्षण दिया । इसके लिए उन्होंने व्यवस्था दिया है कि पिता, भर्त्ता और पुत्र स्त्रियों को प्रत्येक अवस्था में संरक्षण प्रदान करेंगे। जैन सूत्रों में वर्णित है कि स्त्रियों की रक्षा कौमार्यावस्था में पिता, यौवनावस्था में पति तथा वृद्धावस्था में पुत्र करते हैं ।" इसी तथ्य का उल्लेख जैनेतर ग्रन्थों में भी हुआ है ।
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३. स्त्रियों के गुण : जैन पुराणों के अध्ययन से स्त्रियों के गुणों पर प्रकाश पड़ता है । स्त्रियों का सर्वप्रधान गुण पातिव्रतधर्म है, जिसके प्रभाव से वे स्वर्ग की अधिकारिणी हो जाती हैं। पद्म पुराण में वर्णित है कि पतिव्रता स्त्री के शरीर को चाहे छेद डालो या भेद डालो या काट डालो, परन्तु वह अपने भर्त्ता के सिवाय अन्य पुरुष को मन में भी नहीं ला सकती । स्त्रियाँ स्वभाव से मुग्धा होती हैं, उनमें सदाचार का होना आवश्यक है। वस्तुतः स्त्रियों का शील ही आभूषण
१.
पद्म ७३।६५
२. हरिवंश १६ । १६, पद्म १५।१७३
३. दीनारे पञ्चभिः काञ्चित् काञ्चीगुणसमन्विताम् । निज मनुष्यस्य
४.
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ई.
१०.
ह
व्यक्रीणात्कीडनौद्यतः । पद्म ७१।६४
जनको भर्त्ता पुत्रः स्त्रीणामेतावदेव रक्षानिमित्तम् || वही ७८ । ६१ जाया पतिव्वसा नारी दत्ता नारी पतिव्वसा ।
विहवा पुत्तवसा नारी नत्थि नारी संयंवसा || व्यवहारभाष्य ३।२३३
पिता रक्षति कौमारे भर्त्ता रक्षति यौवने ।
रक्षन्ति स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातन्त्यमर्हति ॥ मनु ६ । ३; गौतम १८/१; वशिष्ठ ५।१, ३; बौधायन २/२/५२; महाभारत, अनुशासन पर्व २०/२१; नारद ( दायभाग २८ - ३० )
महा १७ १६६, पद्म ८०1१४७
पद्म ४६८४
स्त्रीणां स्वभावमुग्ध
पृ० १६७-१६८
पद्म ८०।१५४
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| पद्म १२/१३६; तुलनीय - औपपातिक सूत्र ३८,
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