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__ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
संतप्त पुरुष स्त्री रूप औषधि का सेवन करता है ।' कामातुर की स्थिति का वर्णन करते हुए पद्म पुराण में उल्लिखित है कि सूर्य शरीर के बाहरी चमड़े को जलाता है । इतने पर भी सूर्य अस्त हो जाता है, परन्तु काम कभी अस्त नहीं होता है। इसी लिए काम से ग्रसित मनुष्य न सुनता है, न सूंघता है, न देखता है, न अन्य का स्पर्श जानता है, न डरता है और न लज्जित होता है। वस्तुतः काम सेवन से कभी संतोष नहीं होता है। महा पुराण के अनुसार कामी व्यक्ति अपनी बहन आदि का भी विवेक नहीं रख पाता है।
४. मोक्ष : महा पुराण में वर्णित है कि धर्म, अर्थ एवं काम के सम्यक् निर्वाह से मोक्ष की प्राप्ति होती है । यही जीवन का लक्ष्य होता है। विषयभोग में लिप्त रहने से विनाश होता है । इसलिए इसका त्याग करना चाहिए। इसी पुराण में वर्णित है कि अर्थ और काम से संसार की वृद्धि होने से सुख नहीं मिलता। धर्म में भी पाप की सम्भावना से सुख नहीं है । पापरहित मुनिधर्म श्रेष्ठ है। इसी से सुख प्राप्ति होती है और मोक्ष मिलता है। हरिवंश पुराण में मुनिधर्म को साक्षात् मोक्ष का कारण माना है। महा पुराण में वर्णित है कि जिससे जीवों के स्वर्ग आदि का अभ्युदय तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है, वही धर्म है अर्थात् धर्म से ही मोक्ष मिलता है। हरिवंश पुराण में सम्यक्दर्शन, सम्यज्ञान तथा सम्यक्चारित्य को मोक्ष प्राप्ति का उपाय बताया गया है। इसलिए इनसे बढ़कर दूसरा मोक्ष का कारण, न है और न होगा । यही सबका सार वर्णित है।
५. पुरुषार्थ का समन्वय : उपर्युक्त अनुच्छेदों के अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि ये चारों पुरुषार्थ पृथक्-पृथक् हैं, तथापि इन सबका अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। पुराणों द्वारा इनमें आपस में सामाञ्जस्य स्थापित करने का प्रयास किया गया है। सम्यक् रूप से त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ एवं काम) की उपलब्धि पर मोक्ष की प्राप्ति होती है । इसी लिए हमारे आचार्यों ने त्रिवर्ग में पहले सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया है। त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ एवं काम) की प्राप्ति से सभी मनोरथ उपलब्ध होते हैं।"
१. महा ११।१६६ २. पद्म २८।४५ ३. पद्म ३६२०८; महा ७।१६७ ४. महा ८।३ ५. पद्म ३६१७० ६. महा ८।६१-७८
७. महा ५१०१०-११ ८. हरिवंश १८१५१ ६. महा १।१२० १०. हरिवंश १०।१५८-१५६ ११. हरिवंश ६।३४, १७।१;
महा ५१८, ५३१५, ६३।२५५
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