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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
[च] पुरुषार्थ
भारतीय धर्मों में- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-इन चार पुरुषार्थी को महत्त्वपूर्ण माना गया है । यदि इन पुरुषार्थों को व्यक्ति परस्पर अविरोधपूर्वक सेवन करता है, तो उसके व्यक्तित्व का विकास सहज रूप से सम्भव हो सकता है और अन्त में व्यक्तित्व के पूर्ण विकास रूप मोक्ष पुरुषार्थ को वह उपलब्ध कर सकता है ।
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जैन पुराणकारों ने अपने पुराणों में चारों पुरुषार्थों का वर्णन किया है । यद्यपि यह सत्य है कि धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ का जितना विस्तारशः विवेचन जैन पुराणकारों ने किया है, उतने विस्तार के साथ अर्थ और काम पुरुषार्थं का विवेचन नहीं किया गया है । किन्तु जैन पुराणों में इन पुरुषार्थों का जो वर्णन प्राप्य होता है, उससे ज्ञात होता है कि पुराणकार व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के लिए चारों पुरुषार्थों को आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण मानते हैं । प्रस्तुत प्रकरण में जैन पुराणों के संदर्भ में पुराणकारों की दृष्टि को प्रस्तुत किया गया है ।
वैयक्तिक जीवन को शुद्ध करने के लिए पुरुषार्थ की आवश्यकता पड़ती है । पुरुषार्थ के माध्यम से मनुष्य का जीवन सुधरता है, इससे समाज के स्थान पर व्यक्ति लाभान्वित होता | जीवन में चार पुरुषार्थ बतलाये गये हैं, उनमें से प्रथम तीनधर्म, अर्थ एवं काम -- त्रिवर्ग ही सार्थक या साधक हैं । चतुर्थ (मोक्ष) पुरुषार्थ साध्य है । त्रिवर्ग के सम्पन्न होने से चतुर्थ स्वतः पूर्ण हो जाता है ।
१. धर्म जैन पुराणों में धर्म का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए कहा गया है कि इस संसार में कुछ भी सारपूर्ण नहीं है, एक धर्म ही सारपूर्ण है, जो सब प्राणियों का महाबन्धु है । धर्म ही महाहितकारी है । असीम फलदायी धर्म की जड़ें बहुत गहरी हैं । धर्म से मनुष्य इष्ट वस्तुओं को प्राप्त करते हैं । इस लोक में धर्म अत्यन्त पूज्य है । इसलिए जो धार्मिक हैं, वे लोक में विद्वान् होते हैं ।" अन्यत महा पुराण में धर्म की सब प्रकार से रक्षा करने पर बल दिया गया है । धर्म की रक्षा होने पर इससे चर और अचर जगत की रक्षा हो जाती है। इसी पुराण में अन्य प्रसंग में वर्णित है कि धर्म ही पापों से रक्षक, मनोवान्छित फलदायक, परलोक में कल्याणकारी एवं इह लोक में आनन्ददायक है ।
१.
पद्म २७/२६
२.
वही २७।२३
३. वही ७८ । ३४; महा २।३१-४०
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४.
५. महा ४०।१६८ ६. वही ४२११६
पद्म ५।२१-२२
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