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सामाजिक व्यवस्था
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आसुर तथा प्राजापत्य विधियों का ही उल्लेख किया है।' जनेतर अग्नि पुराण में देव प्रकार को छोड़कर केवल सात प्रकारों के विवाह का ही वर्णन उपलब्ध है ।२ अधोलिखित अनुच्छेदों में जैन पुराणों में उल्लिखित विवाह के प्रकारों की विवेचना प्रस्तुत है :
(6) स्वयंवर विवाह : जैन पुराणों के अनुसार स्वयंवर प्रथा के उद्भावक अकम्पन महाराज थे। महा पुराण में स्वसम्प्रदाय विशिष्ट श्रुतियों एवं स्मृतियों की प्रामाणिकता पर बल देते हुए विवाह की सनातन विधि एवं परम्परा का उल्लेख उपलब्ध है। महा पुराण का कथन है कि प्राचीन पुराणों में विवाह की सर्वोत्तम विधि स्वयंवर है।"
विद्वान् क्लरिसे बदेर के कथनानुसार स्वयंवर या पति चुनने का विशेषाधिकार क्षत्रिय कन्याओं को ही था। इस मत में किञ्चित संशोधन किया जा सकता है। स्वयंवर प्रथा राजकन्या के लिए अपेक्षित मानी जाती थी और प्राचीन भारत में राजपद क्षत्रियों के अतिरिक्त ब्राह्मण भी अलंकृत करते थे। जैन पुराणों के अनुसार स्वयंवर का प्रचलन राजघरानों में था। सम्भवतः समाज के धनी एवं सम्पन्न व्यक्ति में भी इस प्रथा का प्रचलन था।
स्वयंवर विधि विषयक वर्णन जैन पुराणों के अनुसार कन्या के विवाह योग्य हो जाने पर पिता उसके विवाह के लिए देश-विदेश में सूचना भेजता था । देशविदेश के राजकुमार नव-निर्मित स्वयंवरशाला में बैठते थे । स्वयंवरशाला में कञ्चुकी के साथ कन्या प्रवेश करती थी और कञ्चुकी सभी राजकुमारों का परिचय कन्या को देता था। कन्या अपनी इच्छानुसार उन राजकुमारों में से एक को पति के रूप में वरण करती थी। तदनन्तर विवाह सम्पन्न होता था। कन्या जिस पुरुष का वरण
१. भगवत शरण उपाध्याय-वही, पृ० २०६
एस० डी० ज्ञानी-अग्निपुराण : ए स्टडी, वाराणसी, १६६४, पृ० २४६ ३. महा ४५।५४ ; पाण्डव ३।१४७ ४. वही, ४४।३२
वही ४३।१६६ __ क्लरिसे बदेर-वीमेन इन ऐंशेण्ट इण्डिया, लंदन, १६२५, पृ० ३१
पद्म ११०।२; महा ६३।८ वही २४।८६-६०, १२१; हरिवंश ३१।४३-५५; महा ४३१५२-२७८, ६३।८; तुलनीय-ज्ञाताधर्मकथा १६, पृ० १७६-१८२; बृहत्कल्पभाष्य २।३४४६; गौतमधर्मसूत्र ४।१०; मनु ३।३२
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