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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन संस्कार वे क्रियाएँ तथा रीतियाँ हैं, जो योग्यता प्रदान करती हैं ।'
[२] 'संस्कार' के प्रति जैन पुराणों का दृष्टिकोण : तात्पर्य एवं व्याख्या : प्रारम्भ काल में जैन धर्म में 'संस्कार' नहीं था । किन्तु श्रौत-स्मार्त ब्राह्मण धर्म के प्रभाव के कारण महा पुराण में गर्भ से लेकर मृत्युपर्यन्त सभी क्रियाओं (संस्कार) के विषय में विशद् वर्णन उपलब्ध है। इसके पूर्व अन्य किसी भी जैन ग्रन्थ में इस प्रकार का विस्तृत वर्णन प्राप्य नहीं होता है। यद्यपि आलोच्य जैन पुराणकार संस्कारों के विषय में भारतीय व्यवस्थापकों के सामान्य प्रवृत्ति के अनुकूल हैं, किन्तु युग-विशेष की परिधित परिस्थितियों के कारण और विशेषतया साम्प्रदायिक आग्रह के फलस्वरूप इनके वर्णन अधिकांशतः भिन्न अवश्य ही पाये गये हैं। संस्कार के लिए जैन पुराणों में क्रिया' शब्द व्यवहृत हुआ है। ये 'क्रियाएँ' या 'संस्कार' व्यक्ति के निजी जीवन से सम्बद्ध रहती हैं। गर्भाधान से निर्वाण पर्यन्त जो क्रियाएँ सम्पन्न की जाती हैं, उन्हें ही संस्कार समझना चाहिए। इसके अतिरिक्त गर्भ से मरणपर्यन्त जो क्रियाएँ अन्य लोगों ने कही हैं, वे यथार्थ नहीं हैं ।२ महा पुराण के अनुसार जीवों का जन्म दो प्रकार का है---शरीर-जन्म तथा संस्कार-जन्म । 'शरीर-जन्म' में प्रथम शरीर का क्षय हो जाने पर दूसरे पर्याय में अन्य शरीर की प्राप्ति होती है और 'संस्कार-जन्म' में संस्कार के योग से आत्मलाभ प्राप्त पुरुष को द्विजत्व की प्राप्ति होती है । ३ जन्म के सभान मृत्यु भी दो प्रकार का कथित है-शरीर-मृत्यु और संस्कार-मृत्यु । आयु के अन्त में शरीर त्यागने को 'शरीर-मृत्यु' एवं व्रती पुरुषों द्वारा पापों के परित्याग करने को 'संस्कार-मृत्यु' कहते हैं ।
'संस्कार' की महत्ता प्रदर्शित करते हुए वर्णित है कि जो भी व्यक्ति आलस्यरहित यथाविधि संस्कारों (क्रियाओं) का सम्पादन करते हैं, उन्हें परमधाम एवं उत्कृष्ट सुख की प्राप्ति होती है । संसार के भवबन्धन, जन्म, वृद्धावस्था एवं मृत्यु से उन्हें मुक्ति मिलती है । ऐसे पुरुष श्रेष्ठ जाति में जन्म ग्रहण कर सद्गृहस्थ एवं परिव्रज्या को व्यतीत कर स्वर्ग में इन्द्र की लक्ष्मी प्राप्त करते हैं । स्वर्ग से च्युत होने पर क्रमश:
१. काणे-हिस्ट्री ऑफ धर्मशास्त्र, भाग २, खण्ड १, पृ० १६०; राजबली
पाण्डेय--हिन्दू संस्कार, वाराणसी, १६६६, पृ० १७-१८ २. महा ३६।२५ ३. वही ३६।११६-१२१ ४. वही ३६।१२२
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