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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
चित्त गृहस्थों को गर्भ की वृद्धि के लिए पूर्व क्रियाओं के समान धृत्ति क्रिया करनी चाहिए। धृति क्रिया के विशेष मंत्र ये हैं—'सज्जातिदातृभागी भव, सुद्गृहिदातृभागी भव, मुनीन्द्रदातृभागी भव, सुरेन्द्रदातृभागी भव, परमराज्यदातृभागी भव, आर्हन्त्यदातृभागी भव, परमनिर्वाणदातृभागी भव' ।२ जिस प्रकार गर्भ-रक्षा के निमित्त वैदिक प्रस्थान में पशुबलि विहित है, उसी प्रकार जैन आचार्यों ने धृति क्रिया का विधान किया है।
५. मोद क्रिया : नवें मास के निकट होने पर द्विजों द्वारा गर्भ की पुष्टि हेतु मोद क्रिया की जाती है। इस क्रिया में श्रेष्ठ द्विजों को गर्भिणी के शरीर पर गाविका-बन्ध करना चाहिए अर्थात् अभिमन्त्रित बीजाक्षर लिखना, मंगलमय आभूषणादि पहनाना, रक्षा के लिए के कंकणसूत्र आदि बाँधना चाहिए। मोद क्रिया का विधायक मंत्र यह है-'सज्जातिकल्याणभागी भव, सद्गृहिकल्याणभागी भव, वैवाहिककल्याणभागी भव, सुरेन्द्रकल्याणभागी भव, मन्दराभिषेककल्याणभागी भव, यौराज्यकल्याणभावी भव महाराजकल्याणभागी भव, परमराज्यकल्याणभागी भव. आर्हन्त्यकल्याणभागी भव । वैदिक सोष्यन्तीकर्म का जैनियों ने मोद क्रिया में अनुहरण किया है। '
६. प्रियोदभव क्रिया (जातकर्म विधि) : सन्तान के उत्पन्न हो जाने पर प्रियोद्भव (जातकर्म) नाम की क्रिया की जाती है। यह क्रिया जिनेन्द्र भगवान का स्मरण कर विधिपूर्वक करने का विधान है। प्रियोद्भव क्रिया में भगवान के पूजन के बाद इन विशेष मंत्रों के पढ़ने का विधान है-'दिव्यनेमिविजयाय स्वाहा, परमनेमिविजयाय स्वाहा, आर्हन्त्यनेमिविजयाय स्वाहा' । जन्म के बाद पिता बालक को
१. महा ३८।८२ २. वही ४०।१०१; तुलनीय-ऋग्वेद १०।६।१-३; तैत्तिरीय संहिता ४।१।५।११ ३. वशिष्ठ, द्रष्टव्य, संस्कार प्रकाश, पृ० १७८ ४. महा ३७१८३-८४ ५. वही ४०।१०२-१०७ ६. बृहदारण्यकोपनिषद् ६।४।२३; आपस्तम्बगृह्यसूत्र १४।१३-१५; पारस्करगृह्य
सूत्र ११६ ७. महा ३८।८५; हरिवंश ८।१०५; तुलनीय-तैत्तिरीय संहिता २।२।५।३-४;
जैमिनि ४।३।३८; बृहदारण्यकोपनिषद् १।५।२; विष्णु पुराण ३।१०।१-५ ८. महा ४०।१०८-१०६
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