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सामाजिक व्यवस्था
को धारण कराया जाता है।'
जैनेतर ग्रन्थों में ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्यों के उपनयन के लिए क्रमशः ८, ११ एव १२ वर्ष की आयु का विधान है। ऐसा सम्भव न होने पर विशेष परिस्थिति में ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्यों के लिए क्रमशः १६, २२ एवं २४ वर्ष की आयु की भी व्यवस्था मिलती है ।२
[२] नियम : उपनीति क्रिया के विशेष मंत्र इस प्रकार हैं-परमनिस्तारकलिंगभागी भव, परमपिलिंगभागी भव, परमेन्द्रलिंगभागी भव, परमराज्यलिंगभागी भव, परमार्हन्यलिंगभागी भव, परमनिर्वाणलिंगभागी भव । इस मंत्र से बालक को विधिवत् अभिमंत्रित करके अणुव्रत, गुणव्रत तथा शिक्षाव्रतों से युक्त गुरु की साक्षीपूर्वक विधिवत् संस्कार करना चाहिए। तदनन्तर गुरु उसे उपासकाध्ययन पढ़ाकर और चारित्र के योग्य उसका नाम रखकर अतिबल विद्या आदि का नियोग रूप से उपदेश देवें । फिर बालक सिद्ध भगवान की पूजा करके अपने आचार्य की पूजा करे। इस अवसर पर बालक को अपनी जाति या कुटुम्ब के लोगों के घर में प्रवेश कर भिक्षा माँगने का विधान है और इस भिक्षा से जो कुछ अर्थ का लाभ हो उसे आदर सहित उपाध्याय को समर्पित कर दे। बालक को विद्या अध्ययन काल में ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करने का विधान है।
१. महा ३८।१०४-१०६, ४०।१५६-१५८ २ गौतमधर्मसूत्र ११६-१४; वशिष्ठधर्मसूत्र ११।४६-५४; ७१।७३; आश्वलायन
गृहसूत्र १।१६१-६; आपस्तम्बधर्मसूत्र १।१।३।१-८, १।१२।३८; आपस्तम्बगृह्यसूत्र ११।१५-१६; बौधायनगृह्यसूत्र २।५७-१३; हिरण्यकेशिन् १।२१६;
मनु २।४२ ३. महा ४०।१५३-१५५; जैनेतर ब्राह्मण ग्रन्थों में यज्ञोपवीत धारण करने के पूर्व
इस मंत्र को पढ़ने का विधान हैयज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहज पुरस्तात् । आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्र यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ॥
बौधायनगृह्यसूत्र २१५७ महा ४०।१६०-१६४, ३८११०७-१०८; तुलनीय-आश्वलायनगृह्यसूत्र पा२२।७-८ एवं १७; बौधायनगृह्यसूत्र २।५। ४३-५५; मनु २।१०८; गौतम २।१७; जैनेतर ग्रन्थों में ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य छात्रों के लिए क्रमशः सात, तीन एवं दो घरों से भिक्षा माँगना अनिवार्य था। ----कौशिकगृह्य सूत्र १।२२।६-७
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