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सामाजिक व्यवस्था
बारह अथवा सोलह वर्ष की होती थी।' यहाँ यह विचारणीय है कि पूर्ववर्ती कालों में ब्रह्मचर्य की अवधि अपेक्षाकृत दीर्घ होती थी उदाहरणार्थ, मनुस्मृति में इसकी सीमा २५ वर्ष निर्धारित है ।२ इस अवधि में संकोच का कारण क्या हो सकता है ? स्पष्ट नहीं है। किन्तु, इसमें संदेह नहीं कि जैनेतर पूर्वमध्यकालीन ग्रन्थों में भी समान निर्देश उपलब्ध है। उदाहरणार्थ, तत्कालीन कुछेक पुराण एवं निबन्ध ग्रन्थ इस बात पर बल देते हैं कि कलियुग में ब्रह्मचर्य की अवधि विस्तृत होना अपेक्षित नहीं है।
महा पुराण के अतिरिक्त ब्रह्मचर्य आश्रम का प्रसंग अन्य जैन पुराण भी देते हैं, यद्यपि उनमें महा पुराण की भाँति सविस्तार वर्णन प्राप्य नहीं होता है। उदाहरणार्थ, पद्म पुराण ने उन ब्रह्मचारियों को उत्कृष्ट एवं धर्म-प्राप्ति का अधिकारी माना है, जो दिगम्बर मुनियों की भावपूर्वक स्तुति करते हैं। हरिवंश पुराण ने यज्ञोपवीत के केवल तीन लरों का उल्लेख करते हुए उन्हें सम्झक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्र का प्रतीक माना है । इसे धारण करने वाले नारद मुनि को असाधारण पाण्डित्य की शोभा माना है तथा उनके नैष्ठिक ब्रह्मचर्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
२. गहस्थाश्रम : ब्रह्मचर्याश्रम के बाद गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का विधान है। गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का प्रथम सोपान विवाह है । अतएव महा पुराण में वर्णित है कि-गृहस्थों के लिए विवाह एक धर्म है, क्योंकि गृहस्थों को सन्तान की रक्षा में अवश्य प्रयत्न करना चाहिए।
१. महा ३८/१२३ २. द्रष्टव्य, यादव-वही, पृ० १८ ३. हाजरा-स्टडीज इन द उपपुराणाज, भाग २, पृ० ४६७ में उद्धृत आदित्य
पुराण; बृहन्नारदीयपुराण २२।१३,१५; कृत्यकल्पतरु के पृ० १६०; पर
उद्धृत ब्रह्मपुराण; पराशर-माधवीय १।१३ ४. पद्म ४१५० ५. हरिवंश ४२।५-६ ६. देवेमं गहिणां धर्मं विद्धि दारपरिग्रहम् ।
सन्तानरक्षणे यत्नः कार्यो हि गृहमेधिनाम् ।। महा १५।६४ तुलनीय-तेषां गृहस्थो योनिरप्रजनत्वादितरेषाम् । गौतम ३५३; मनुस्मृति ३७७-७८
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