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________________ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन व्यवस्था को हतोत्साहित किया गया है। जबकि महा पुराण ने जाति-व्यवस्था को मान्यता प्रदान की है । महा पुराण का प्रभाव उत्तरवर्ती जैन ग्रन्थों में मिलता है । ५२ उपजातियाँ : सामाजिक एवं आर्थिक विश्लेषण : जैन पुराणों में जिन उपजातियों का उल्लेख हुआ है उन्हें दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं । प्रथम, जिनका आविर्भाव सामाजिक संश्लेषण के परिणामस्वरूप हुआ था । द्वितीय, जो तत्कालीन विशिष्ट आर्थिक परिस्थितियों के फलस्वरूप आविर्भूत हुए थे । प्रथम वर्ग के अन्तर्गत सामाजिक आवर्त्त', ( म्लेच्छों की उपजाति), आरण्य ( म्लेच्छों की उपजाति), चिलात', ( धार्मिक उत्सवों में सम्मिलित होने वाली जंगली जाति); म्लेच्छ', शबर । " द्वितीय वर्ग में आर्थिक दृष्टिकोण से अग्रलिखित उपजातियाँ आती हैं : क्लारिन" ( शराब द्वारा आजीविका चलाने वाली ), कपाटजीवि २ ( बढ़ई), कुलाल " (कुम्भकार), कुविन्द" ( जुलाहा ), कंवर्त" ( कहार), गोपाल ( अहीर या आभीर), १. पद्म ११।१६५-२०२ २. फूल चन्द्र - वर्ण, जाति और धर्म, काशी, १६६३, पृ० १५८-१६४ ३. महा ३२|७६ ४. वही १६ १६१ ५. वही १६।१६१ ६. वही ३२|७६ ७. वही ३६ । १६८ ८. पद्म ४१।३; महा १६ १६१ ६. वही २७।५; वही ४१।६६ दृष्टि से निम्नवत् उपजातियाँ आती हैं ; चरट" (जंगली योद्धाओं की जाति), ( म्लेच्छों की उपजाति), दिव्या जाति), पुलिन्द (असभ्य एवं वर्वर १०. ११. हरिवंश ३३।६० वही ७/२६६, ३२ २६; महा १६।१६१ १२. पद्म ६१।२४ १३. वही ५।२८७; महा २५।१२६ १४. महा ४।२६ १५. पद्म १४।२७ १६. वही ३४ । ६०; महा ४२।१३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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