________________
२६]
चौथा अध्याय
यूनिट गति में लेलें । हम किसी एक में सौ यूनिट ले सकते हैं अथवा पचास पचास यूनिट दोनों में ले सकते हैं। ज्ञान की भी यही बात हैं । हममें जो शक्ति है उससे चाहे हम वैज्ञानिक बन जॉय चाहे गणितज्ञ चाहे कवि चाहे और कुछ । हम उसी शक्ति नहीं बन सकते । बनेंगे तो थोड़े थोड़े बनेंगे ।
● मानलो आत्मा में सौ पदार्थ जानने की शक्ति है तो उससे कोई भी योग्य सौ पदार्थ जाने जा सकते हैं। वह अनादि से सौ सौ पदार्थों को जानता रहा हो तो इससे अनन्त पदार्थ का ज्ञान उसमें न कहलायेगा, क्योंकि जिस समय सौ से बाहर कोई नया पदार्थ जाना जायगा उस समय कोई पुराना भूल जायगा । इस प्रकार के अनुभव हमें जीवन में पद पद पर मिलते हैं । हमारे पास एक डिब्बी है जिसमें सौ रुपये बनते हैं इससे अधिक रखने की शक्ति उसमें नहीं है फिर भी क्रमसे उसमें हजारों रुपये आ सकते हैं । नये रुपये आते जायेंगे और पुराने निकलते जायगे इस प्रकार हजारों रुपयों को रखकर भी वह एक समय में हजारों रुपये नहीं रख सकती इसलिये उसकी शक्ति हजारों रुपये रखने की नहीं कहलाती । "हमारी ज्ञान शक्ति सीमित है फिर भी क्रमसे असीम समय में वह 'असीम को भी जान चुकता है पर एक समय जाता है ।
में वह सीमित ही
प्रश्न - सभी आत्मा स्वभाव से बराबर
शक्ति रखते हैं तब
एक आत्मा जिसे जान सकता है उसे दूसरा क्यों नहीं ? आत्मा
}
अनंत है इसलिये अनंतका ज्ञान सबको होना चाहिये। खासकर जब आवरण कर्म हट जाँय तब तो होना ही चाहिये ।