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भगवती सूत्र-श. १८ उ. ३ निर्जरा के पुद्गल को सूक्ष्मता
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नमस्कार किया और माकन्दिक-पुत्र अनगार के समीप आकर उन्हें वन्दना नमस्कार कर के उनके कयन पर सन्देह करने के कारण उन्हें सम्यक् प्रकार से विनयपूर्वक बारंबार खमाया।
- विवेचन-पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय से निकल कर जीव, मनुष्य-भव प्राप्त कर के उसी भव में मोक्ष जा सकता है । तेउकाय और वायुकाय से निकला हुआ जीव मनुष्य-भव भी प्राप्त नहीं कर सकता । अत: यहां उसकी पृच्छा नहीं की है।
निर्जरा के पुद्गल की सूक्ष्मता
४-तएणं से मागंदियपुत्ते अणगारे उट्ठाए उढेइ, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, ते० २ उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी
प्रश्न-अणगारस्स णं भंते ! भावियप्पणो सव्वं कम्मं वेएमाणस्स, सव्वं कम्मं णिजरेमाणस्स, सव्वं मारं मरमाणस्स, सव्वं सरीरं विप्पजह. माणस्स, चरिमं कम्मं वेएमाणस्स, चरिमं कम्मं णिजरेमाणस्स, चरिमं मारं मरमाणस्स, चरिमं सरीरं विप्पजहमाणस्स, मारणंतियं कम्मं वेए. माणस्स, मारणंतियं कम्मं णिजरेमाणस्स, मारणंतियं मारं मरमाणस्स, मारणंतियं सरीरं विपजहमाणस्स जे चरिमा णिजरापोग्गला सुहमा णं ते पोग्गला पण्णत्ता समणाउसो! सव्वं लोगं पि णं ते ओगाहित्ता णं चिट्ठति ? . उत्तर-हंता, मागंदियपुत्ता ! अणगारस्स णं भावियप्पणो जाव ओगाहित्ता णं चिट्ठति ।
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