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अलंकारचिन्तामणि दोनोंमें समान हैं। इसी प्रकार विप्रलम्भ शृंगार, खण्डिता आदि नायिकाओंके स्वरूप भी वणित किये गये हैं।
____ इसी प्रकार रुद्रटका व्याजश्लेष, अलंकारचिन्तामणिमें व्याजस्तुति, रुद्रटका जाति अलंकार, अलंकारचिन्तामणिमें स्वभावोक्ति एवं रुद्रटका पूर्व अलंकार, अलंकारचिन्तामणिमें अतिशयोक्तिके रूप में आया है। दोषोंका वर्णन प्रायः तुल्य है। अलंकारचिन्तामणिमें दोषोंका पूर्णतया विस्तार है। काव्यालंकार में केवल नौ अर्थदोष और चार उपमादोष वर्णित हैं।
संक्षेपमें काव्यालंकार और अलंकारचिन्तामणिमें निम्नलिखित विशेषताएँ उपलब्ध है
१. काव्यालंकारमें रीतियोंको महत्त्व नहीं दिया है पर अलंकारचिन्तामणिमें रीतियोंका महत्त्व वणित है।
२. काव्यालंकारमें गुणोंका विवेचन नहीं आया है जब कि अलंकारचिन्तामणिमें चौबीस गुणोंका विवेचन किया गया है।
___३. काव्यालंकारमें भाव नामक अलंकारका प्रतिपादन किया है जो व्यंग्यार्थके सिद्धान्तके समीप है । अलंकारचिन्तामणि में भाविक अलंकारका स्वरूप आया है। यह स्वरूप प्रायः भाव अलंकारके स्वरूपके तुल्य है। जहाँ अत्यन्त विचित्र चरित्र-वर्णनसे अतीत और अनागत वस्तुओंकी वर्तमानके समान प्रतीति हो वहाँ भाविक अलंकार होता है। भावनातिरेकके कारण वस्तुके अदृश्य रहनेपर भी उसकी प्रत्यक्षके समान प्रतीति होती है।
४. काव्यालंकारमें काव्यकी परिभाषा अपूर्ण और अविकसित है।
५. महाकाव्यके स्वरूप-निर्धारणमें काव्यालंकारसे अलंकारचिन्तामणि अधिक आगे है।
६. दोष-विवेचन भी अलंकारचिन्तामणिका अधिक समृद्ध है।
७. शब्दालंकारोंका अलंकारचिन्तामणिमें अनूठा निरूपण आया है । राजशेखर कृत काव्यमीमांसा और अलंकारचिन्तामणि
काव्य-मीमांसा अठारह अध्यायोंमें विभक्त है । काव्यके समस्त वर्णनीय विषयोंका अत्यन्त सारगर्भित आलोचनात्मक शैली में प्रतिपादन हुआ है । प्रथम अध्यायमें पूर्वाचार्योंकी परम्पराका निर्देश करनेके पश्चात् अठारह अध्यायोंके नाम दिये गये हैं। नामानुसार ही इन अध्यायोंमें विषयोंका वर्णन आया है। नाम निम्न प्रकार हैं
१. शास्त्र संग्रह । २. शास्त्र निर्देश । ३. काव्य-पुरुषकी उत्पत्ति। ४. पद-वाक्य विवेक ।
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