Book Title: Alankar Chintamani
Author(s): Ajitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 408
________________ -३२३ ] पञ्चमः परिच्छेदः अप्रेक्ष्योऽजनि राहुरप्यपि विधुः कार्येतरद्वन्द्वगः सूर्यः शून्यपदं गतश्च रिपवः संशेरते गह्वरे । गर्भस्थोऽतिसुकम्पते शिशुररं यस्यास्य मे गर्जनात् कीटा' धावत मा म्रियध्वमिति तच्चक्रेड्भटो युद्धवान् ॥३२।। 'सर्वेष्वपि रसेषूक्ता नायकास्ते चतुर्विधाः । प्रत्येकं तेषु शृङ्गारे चत्वारो भाषिता बुधैः ॥३२॥ दक्षिणः शठधृष्टावनुकूलश्चेति भाषिताः। दक्षिणो बहुसौम्यः स्याद् गूढविप्रीतिकृच्छठः । व्यक्तागा गतभीधृष्टस्त्वेकाधीनोऽनुकूलकः ॥३२३॥ बह्वीषु नायिकासु अवैषम्येण स्नेहानुवर्ती दक्षिणः। नायिकामात्रज्ञाताप्रोतिकारो शठः। नखक्षतादिना व्यक्तापराधो धृष्टः । नायिकायाम् एकस्यां विशेषानुरक्तोऽनुकूलः । उदाहरण चक्रवर्तीका एक सैनिक मेरे गर्जन करनेसे राहुके सदृश अदृश्य हो गया, प्रबल युद्ध में प्राप्त चन्द्र और सूर्य आकाशमें भाग गये, शत्रुगण गुफाओं में शयन करते हैं, गर्भमें रहनेवाला शिशु शोघ्रतापूर्वक अत्यधिक कांप रहा है, हे कीटके समान शत्रुसैनिको, मैदानसे भागो, मरो मत, इस प्रकार कहते हुए युद्ध करने लगा ॥३२१॥ रसानुसार नायकोंकी व्यवस्था प्रायः सभी रसोंमें धीरोदात्त आदि नायक ग्राह्य होते हैं, पर शृंगार रसमें चारों प्रकारके नायकोंके चार-चार भेद कहे गये हैं ॥३२२।। शृंगार रसानुसार नायकोंके उपभेद शृंगार रस में प्रत्येक भेदवाले नायकके चार भेद होते हैं-(१) दक्षिण (२) शठ (३) धृष्ट (४) अनुकूल । जो बहुत सौम्य होता है, उसे दक्षिण नायक कहते हैं । छिपकर अप्रिय कार्य करनेवालेको शठ नायक कहते हैं। प्रकट अपराधी होनेपर भी जो डरता नहीं है, उसे धृष्ट नायक कहते हैं। जो केवल अपनी प्रियतमाके ही अधीन हो, उसे अनुकूल नायक कहते हैं ॥३२३।। -बहुत नायिकाओंमें समान रीतिसे प्रेम करनेवालेको दक्षिण, सभी नायिकाओंसे विदित अप्रिय कार्य करनेवालेको शठ नायक कहते हैं। परनायिका कृत नखक्षत इत्यादिके द्वारा प्रकट अपराधवालेको धृष्ट और एक ही नायिकामें विशेष आसक्तिवालेको अनुकूल नायक कहते हैं । १. कोटादावत मा-ख। २-३. सर्वेष्वपि इत्यारभ्य....बुधैः पर्यन्तं-खप्रतो नास्ति । ४. -खप्रतो इत्यस्यानन्तरं दक्षिणः इत्यादि ३२२ तमछन्दो वर्तते । ५-६. व्यक्ता इति आरम्य अनुकूलकः पर्यन्तं-खप्रती नास्ति । ७. व्यक्तापराधो निर्भयो धृष्ट:-क-ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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