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[ ५।३९९
अलंकारचिन्तामणिः चारुचित्रगतं नाथं दृष्ट्वा राजीवलोचना। मृदुसल्लापिनी ब्रीडानतास्या रागिणी स्थिता ॥३९९।। मदनदवशमाय प्रस्तुतायां कथायां तव नृपवर सख्या जृम्भितैर्लोलनेत्रा। कठिनवरकुचाग्रोन्मेषमुत्कीर्णयन्ती वलयितमृदुसारोदनबाहूज्ज्वलास्थात् ॥४००।। गर्वावेशस्तु बिब्बोकः कथितोऽनादरो यथा । ऊरुश्रोणिकुचान् स्पृशन् व्यपनयंस्तत्प्रोतचीनाञ्चलं मृग्यास्ते तिलकालका इति पदालीलातिलोलाङ्गलिः । भ्रूभङ्गोरुतरङ्गतितर्दशा दष्टोऽत्यवज्ञं तया गर्वावेशविचित्तयानवरतेनाहं कृतार्थीकृतः ॥४०१॥
अंगड़ाई लेना, पसीना आना, अथवा प्रियतमके स्मरण करनेपर उक्त चेष्टाओंके होनेको मोट्टायित कहते हैं ॥३९८॥
कमलनयना मनोरम चित्रमें अपने प्रियतमको देखकर अत्यन्त मधुरभाषिणी प्रेमिकाके समान लज्जासे मुख झुकाकर खड़ी हो गयी ॥३९९।।
हे राजन् ! कामाग्निकी शान्तिके लिए सखीके द्वारा तुम्हारी चर्चा प्रस्तुत किये जानेपर चंचलनयना, कठिन और रमणीय स्तनके अग्रभागपर विकासको प्रकट करती गले में लपेटे हुए कोमल और सुन्दर भुजासे परम कमनीय वह कामिनी जम्हाई लेती हुई खड़ी हो गयी ।।४००॥
बिब्बोक
गर्वके आवेश या प्रेमकी जांचके लिए या दीप्तिके लिए नायिकाके द्वारा किये गये नायकके अपमानको बिब्बोक कहते हैं।
उदाहरण
तुम्हारे कुछ श्वेतकेश खोजने लायक है, इस बहाने उसके श्रोणी और स्तनोंका स्पर्श करता हुआ तथा उन अंगोंपर से पतले वस्त्रको हटाता हुआ मैं भौंहोंको बहुत टेढ़ाकर आँखें नचाते हुए उसके द्वारा अत्यन्त अपमानपूर्वक देखा गया और गर्वके आवेशसे उसने चमत्कारपूर्ण नूतन रतिक्रियासे मुझे कृतार्थ किया ॥४०१।।
१. दिशा-ख ।
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