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अलंकारचिन्तामणिः
[५।४०४लक्ष्मोदाहृतितः प्रोक्तो नेतृभेदो मनागिति । शेषस्तु कामशास्त्रादौ 'निस्तरेण विबुध्यताम् ॥४०४॥ वक्तुमिच्छति चेद् ब्रूयाद् राजसंसदि कोविदः । गलावलम्ब्यलंकारचिन्तामणिविभूषणः ॥४०५॥ अल्पज्ञत्वात् प्रमादाद् वा स्खलितं तत्र तत्र यत् । संशोध्य गृह्यतां सद्भिः श्लिष्टावकरदृष्टिवत् ।।४०६।। इत्यलंकारचिन्तामणौ रसादिनिरूपणो नाम पञ्चमः परिच्छेदः ।
लक्षण और उदाहरणों द्वारा संक्षेपमें नायिकाभेद कहा गया है, विस्तारसे जानना हो तो कामशास्त्र आदि ग्रन्थोंको पढ़ना चाहिए ।।४०४॥
गले में 'अलंकारचिन्तामणि' नामक अलंकार ग्रन्थको हारके समान धारण किया हुआ विद्वान् यदि राजसभामें बोलना चाहे, तो बोल सकता है ।।४०५।।
अल्पज्ञता या प्रमादसे जहां-तहाँ भूल हुई हो तो सज्जन व्यक्ति इसका संशोधनकर तथ्योंको इस प्रकार ग्रहण करे, जिस प्रकार आँखोंसे देखकर कूड़े-करकटके ढेर मेसे अच्छी वस्तुको ग्रहण कर लिया जाता है ।।४०६॥
अलंकारचिन्तामणिमें रसनिरूपणनामका पंचम परिच्छेद समाप्त हुआ।
.. १. विस्तरेण निबध्यताम् -ख ।
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