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अलंकारचिन्तामणिः
[५।३८८धर्मासारा प्रचञ्चन्मणितघनरवा मुक्तके शौघमेघा नेत्रप्रद्योतविद्युत्प्रसरसुरुचिरा सालकास्येन्दुरम्या। आरक्ताक्षी प्रभाश्रीशबलितमहिमचूरुसुत्रामचापा प्रावटकालोपमा सा रतनेरचरिता शिक्षिकाभत्कलानाम् ॥३८८॥ माधुर्यं रम्यता श्लाध्यवस्तुयोगेऽपि तद्यथा। वल्काम्बरेणापि च चारुगुजाफलोरुहारेण विभूषितापि । वनेचरी कुम्भकुचा नितम्बभारेभयाना निरुणद्धि पान्थम् ॥३८९।। चलनेनाहतं चित्तवृत्तं धैर्य भवेद्यथा । निशि निशि शशिबिम्बो जाज्वलीतु स्वगात्रज्वरपरिचितहारो दन्देहीतु प्रतप्तः । अतनुरपि निहन्तु प्राज्यमेवं च भर्तुः पितुरपि मम मातुःश्लाघ्यता नन्वहाप्या ॥३९०॥
उदाहरण
पसीनेसे स्नात, वृद्धिंगत रशनास्थ मणियोंकी ध्वनियोंसे व्याप्त, मेघके समान खुले हुए केशसमूहसे युक्त, चमकती हुई विद्युत्के विस्तारसे सुन्दर, केशयुक्त मुखचन्द्रसे रमणीय, ईषत् रक्त नेत्रवाली, देहको प्रभासे चित्रित, भौंहरूपी इन्द्रधनुषके चापसे विशिष्ट वर्षा ऋतुके समान, आसक्त मनुष्योंसे उपभुक्ता वह सुन्दरो कलाओंकी शिक्षिकाके समान प्रतीत हुई ॥३८८॥ माधुर्य
प्रशंसनीय वस्तुओंके योग न रहनेपर भी रम्यताको माधुर्य कहते हैं । उदाहरण
वृक्षके छालके वस्त्रसे तथा सुन्दर गुंजाफलके आभूषणोंसे सुशोभित, कुम्भके समान पयोधरवाली और नितम्बके भारसे हस्तिनीके समान मन्द-मन्द चलनेवाली वह वनेचरी पथिकको रोक रही है।।३८९।। धैर्य
अचंचल मनोवृत्तिको धैर्य कहते हैं । उदाहरण
धैर्यशालिनी कोई नायिका कह रही है—प्रति रात्रि चन्द्रमा बार-बार जले, प्रतप्त ज्वर अपने शरीरको खूब जलावे, कामदेव भी मार डाले, तो भी अपने पति, पिता
और माताकी प्रतिष्ठा गंवाने योग्य नहीं है ॥३९०॥ १. केशाघमेघा-ख । २. वर-ख । ३. शिक्षिता-ख । ४. भारेभयानानि रुणद्धि -ख ।
५. दन्दहीनु....-ख । Jain Education International
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